'पालने से लेकर कब्र तक सब पर GST'....मनोज झा ने साधा केंद्र पर निशाना
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मनोज झा ने महंगाई पर कुछ पक्तियां भी पढ़ीं. उन्होंने कहा, ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझसे में शर्मिंदा बहुत हूँ...महंगाई के मौसम में ये त्यौहार पड़ा है.'' मनोझ झा ने कहा, कुछ समय पहले एक बड़े राज्य में चुनाव था. बड़ी पार्टी चुनाव लड़ रही थी. इस दौरान कीमतें नहीं बढ़ीं. लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद ही बढ़ने लगीं.
आरजेडी से राज्यसभा सांसद मनोझ झा ने महंगाई और बेरोजगारी पर सदन में चर्चा के दौरान केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि पालने से लेकर कब्र तक ऐसा कोई मसला नहीं है, जिस रप जीएसटी न लगा हो. उन्होंने कहा, कब्र में दाह संस्कार की लकड़ी पर तो कम से कम आदमी सुकुन से लेटकर दुनिया को अलविदा कहे.
संसद का मॉनसून सत्र चल रहा है. कई दिनों के हंगामे के बाद मंगलवार को सदन में चल रहा गतिरोध खत्म हो गया. इसके बाद सदन में महंगाई पर चर्चा हुई. इस दौरान मनोझ झा ने केंद्र सरकार पर हमला बोला. उन्होंने सरकार से मांग की है कि अगर जीएसटी को लेकर सरकार से गलती हुई है, तो उन्हें मानना चाहिए और अपने फैसले को वापल लेना चाहिए.
मनोज झा ने महंगाई पर कुछ पक्तियां भी पढ़ीं. उन्होंने कहा, ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझसे में शर्मिंदा बहुत हूँ...महंगाई के मौसम में ये त्यौहार पड़ा है.'' मनोझ झा ने कहा, कुछ समय पहले एक बड़े राज्य में चुनाव था. बड़ी पार्टी चुनाव लड़ रही थी. इस दौरान कीमतें नहीं बढ़ीं. लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद ही बढ़ने लगीं.
मनोझ झा ने संसद में सुनाई कहानी
मनोज झा ने संसद में कहानी भी सुनाई. उन्होंने कहा, ''गंभीर चर्चा के लिए सदन में हम सब बैठे हैं. मैं एक कहानी सुनाता हूं. लेकिन फिल्मों की तरह कुछ भी काल्पनिक नहीं. एक पात्र का नाम है नयनसुख लाल. वह दिल्ली में अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता है. छोटी नौकरी है. वह सांसदों के घर की रखवाली करता है. 20000 सैलरी मिलती है. लेकिन हाथ में सिर्फ 10-12000 आता है. इसमें वह 4000 रुपए किराया दे देता है. 1200 का सिलेंडर भराता है. 3000 रुपए खाने पर खर्च होता है. स्कूल की फीस दो बच्चों की 2000 रुपए है. इसमें वाहन शामिल नहीं है. न ही इसमें पेट्रोल-डीजल का खर्चा जोड़ा गया. क्योंकि उसके पास सिर्फ साईकिल है. ऐसे नयनसुख दिल्ली ही नहीं सब जगह हैं. दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता और पटना में भी है. नयनसुख की नजर से देखिए तो दिखेगा महंगाई है.''
अग्निपथ को लेकर साधा निशाना
‘जिस घर में कील लगाते जी दुखता था, उसकी दीवारें कभी भी धसक जाती हैं. आंखों के सामने दरार में गाय-गोरू समा गए. बरसात आए तो जमीन के नीचे पानी गड़गड़ाता है. घर में हम बुड्ढा-बुड्ढी ही हैं. गिरे तो यही छत हमारी कबर (कब्र) बन जाएगी.’ जिन पहाड़ों पर चढ़ते हुए दुख की सांस भी फूल जाए, शांतिदेवी वहां टूटे हुए घर को मुकुट की तरह सजाए हैं. आवाज रुआंसी होते-होते संभलती हुई.
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