
नटराज, किरात, भील, कपाली से परिवार तक शिव ही शिव... समझिए महादेव का उद्गम और अनंत स्वरूप
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शिव के अवतारों में जिस तरह के स्वरूपों का वर्णन होता है उसमें कहीं भी किसी बड़े घराने या राजपरिवार से जुड़ाव का जिक्र नहीं है, बल्कि वह सारे अवतार जनजातियों से ही जुड़े हुए हैं. इनमें सबसे प्रमुख है, शिव का किरात अवतार. महाकवि भारवि ने संस्कृत साहित्य में इसी अवतार को लेकर 'किरातार्जुनीयम' लिख दिया है.
शिव पूरी तरह से पारिवारिक व्यक्ति हैं. जहां पुराणों में वैष्णव मत के अनुसार विष्णु भगवान से पहले मानवीय स्वरूप में आकर तब महानता के चरम पर पहुंचते हैं, वहीं शिव जैसे हैं वह वैसे ही स्वरूप में दिखाई देते हैं और उसी स्वरूप में देवत्व की पदवी तक पहुंचते हैं. शिव का ऐसा होना सहजता का संदेश है और इसीलिए भारतीय परिवारों में सामान्य तौर पर शिव पूजन की बड़ी मान्यता है. गांव-गांव में तो यह कहावत बड़ी ही मशहूर रही है कि 'एक लोटा जल-सब समस्या हल'
कैसे हुई शिव की उत्पत्ति? बात शिव के उद्गम और उनके प्राकट्य की आती है तो स्कंद पुराण कहता है सृष्टि की शुरुआत में एक प्रकाश स्तंभ प्रकट हुआ. इसी प्रकाश स्तंभ का कोई आदि कोई अंत नहीं था. खुद त्रिलोकपति भगवान विष्णु और ब्रह्मा भी इसका ओर-छोर नहीं खोज पाए. तब उनकी प्रार्थना पर शिव अपने साकार रूप में सामने आए. इसी तरह शिवलिंग का अस्तित्व सामने आया. शिवलिंगम, शिव की प्रकृति का चिह्न है और उनकी पहचान का स्वरूप है.
यहीं से शिव के अविनाशी कॉन्सेप्ट की अवधारणा भी निकलती है. सनातन का जो अद्वैत 'अहम् ब्रह्मास्मि' की बात करता है, उसका ही दूसरा रूप शिवोऽहम् है. ये दोनों ही कॉन्सेप्ट दो होते हुए भी एक ही हैं और यह कहते हैं कि संसार में जो कुछ भी दिख रहा है और जो नहीं भी दिख रहा है, वह ब्रह्म है, वही शिव है. ये व्याख्या हमें फिर से ऋग्वेद की ओर ले चलती है, जहां लिखा है एकम् सत विप्रः बहुधा वदंति. इसी सूक्त की व्याख्या छान्दोग्य उपनिषद कुछ इस तरह करते हुए कहता है, 'एकोहं बहुस्याम:'. यानि कि मैं एक हूं और बहुत होना चाहता हूं.
ऋग्वेद में रुद्र कौन हैं? इन सूक्तियों और संदर्भों के बीच अभी हम सिर्फ शिव को चुनते हैं और फिर से ऋग्वेद की ओर चलते हैं, जहां रुद्र का वर्णन है. ऋग्वैदिक युग में जहां एक ओर सूर्य, इंद्र, वरुण, मित्र और आदित्य देवों के लिए सूक्तियां लिखी गई हैं, वहीं ऋग्वेद में एक और सर्वशक्तिशाली देवता का जिक्र हुआ है, जिसे रुद्र कहा गया है. रुद्र इतना शक्तिशाली है कि उसे ही बलवानों में सबसे अधिक बलवान कहा गया है. यहां उसका स्वरूप एक ऐसे युवक के तौर पर है, जो शक्तिशाली है, सामर्थ्यवान है. उसमें अपार बल है.
बलवानों में सबसे बलवान और सबसे बड़े वैद्य भी हैं शिव ऋग्वेद में रुद्र को पहले एक जगह शक्तिशाली और भयंकर कहा गया है. रुद्र का यही भयंकर रूप आगे की वैदिक रचनाओं और उसके बाद लिखे गए पुराणों में विनाश या प्रलय के देवता के रूप में बदल जाता है. जब पुराणों में त्रिदेवों का सिद्धांत सामने आया तब ब्रह्मा को सृष्टि का सृजनकर्ता, विष्णु को पालक और शिव को संहारक के रूप में पहचाना गया है. पुराणों में संहार के देवता ही वेदों में वर्णित रुद्र हैं ऐसा माना जाता है.

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