
दिल्ली में मेयर नहीं स्टैंडिंग कमेटी सदस्यों का चुनाव कैसे है गेम चेंजर? समझिए पूरा गणित
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दिल्ली में मेयर का चुनाव रोचक होता जा रहा है. AAP के पास एमसीडी के सदन में बहुमत है, ये जानते हुए भी बीजेपी ने अपना मेयर उम्मीदवार उतार दिया है. इसका मतलब ये है कि मुकाबला तो 6 जनवरी को निश्चित है.
दिल्ली में मेयर का चुनाव रोचक होता जा रहा है. आम आदमी पार्टी के पास एमसीडी के सदन में बहुमत है, ये जानते हुए भी बीजेपी ने अपना मेयर उम्मीदवार उतार दिया है. इसका मतलब ये है कि मुकाबला तो 6 जनवरी को निश्चित है. लेकिन इस कदम ने दिल्ली की सियासत में हलचल पैदा कर दी है. दरअसल, आम आदमी पार्टी यूं तो नंबर गेम में बीजेपी से कहीं आगे है. मेयर के चुनाव को लेकर उसके पास एक बड़ा एडवांटेज भी है क्योंकि विधानसभा में संख्याबल के आधार पर 14 में से 13 नामित विधायक उसी के हैं जो मेयर चुनाव में वोट डालेंगे. 10 सांसदों को भी वोटिंग अधिकार है जिसमें 7 बीजेपी के हैं तो 3 राज्यसभा सांसद आप के. इसलिए कुल 274 जिन चुने हुए नुमाइंदों को वोटिंग का अधिकार है, उसमें 150 की संख्या आम आदमी पार्टी के पास है जबकि भारतीय जनता पार्टी के पास महज 113 वोट हैं.
इसलिए इस गणित से तो मेयर का चुनाव आम आदमी पार्टी के लिए बेहद आसान दिखाई पड़ता है. लेकिन सवाल है कि फिर बीजेपी ने उम्मीदवार उतारा ही क्यों और वो भी अपनी सानियर नेता रेखा गुप्ता को जो इस बार तीसरी बार पार्षद बनी हैं. तो इसके पीछे हिसाब ये है कि एमसीडी में दल-बदल कानून लागू नहीं होता है और ना ही कोई व्हिप काम करता है. तो अगर जोड़ तोड़ हुई तो संभावनाएं असीमित हैं.
मेयर का चुनाव ज्यादा लोकतांत्रिक, वहां पार्टी नहीं योग्यता को दी जाती है तरजीह
तमाम चुनावों में मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव ज्यादा लोकतांत्रिक है. इसलिए व्यवस्था ऐसी बनाई गई है कि कोई भी पार्षद किसी भी उम्मीदवार को वोट कर सकता है. वहीं पार्षदों को ये छूट होती है कि पार्टी लाइन से ऊपर उठकर वो अपने पीठासीन अधिकारी यानी मेयर का चुनाव कर सकता है. पार्षदों को उम्मीदवारों की योग्यता परखनी होती है ना कि किसी पार्टी की विचारधारा से वो बंधा होता है. मतलब कि अगर किसी पार्टी के सिंबल पर जीत कर आए पार्षद को ये लगता है कि विरोधी पार्टी का प्रत्याशी सदन की कार्यवाही चलाने में ज्यादा योग्य है तो वो उसे अपना मत दे सकता है. चूंकि ऐसा गुप्त मतदान के जरिए होता है इसलिए उसके वोट की गोपनीयता बनी रहती है.
चुनाव सिर्फ मेयर या डिप्टी मेयर का नहीं, स्टेंडिग कमेटी यानी स्थाई समिति के सदस्यों का भी
जिस दिन एमसीडी के सदन में मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव होगा उसी दिन सदन उन 6 सदस्यों को भी चुनेगी जो एमसीडी स्थाई समिति में जाएंगे. स्थाई समिति एमसीडी की सबसे पावरफुल कमेटी होती है जिसके पास ज्यादातर मामलों में सदन से अधिक अधिकार होते हैं. इसलिए 18 सदस्यों वाली स्टैंडिंग कमेटी में जो चेयरमैन बनेगा उसकी हैसियत कामकाज के लिहाज से मेयर से अधिक होगी. वो इसलिए क्योंकि एमसीडी के तमाम वित्तीय और प्रशासनिक फैसले पहले स्थाई समिति में ही लिए जाते हैं जिसपर सदन मुहर लगाता है जो एमसीडी की सर्वोच्च संस्था है. मेयर नगर निगम के सदन की अध्यक्षता करता है जिसकी बैठक महीने में एक बार ही होती है. जबकि स्टैंडिंग कमेटी की बैठक हर हफ्ते होती है. सदन से चुने गए 6 सदस्यों के अलावा स्टैंडिंग कमेटी के लिए जो 12 और सदस्य चुने जाएंगे वो जोन से आएंगे. दिल्ली नगर निगम 12 जोन में विभाजित है और हर जोन से एक-एक सदस्य स्टैंडिंग कमेटी में आता है.

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