क्रिकेट का कांव कांव: एक रन-आउट से इतने सारे अंग्रेज़ बिलबिलाये क्यों हैं?
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क्रिकेट की दुनिया में इस समय 'मांकड़िंग' को लेकर बहस छिड़ी हुई है. हाल ही में ऐसे कई मौके सामने आए जहां गेंदबाज ने रनिंग एंड पर गेंद फेंके जाने से पहले दौड़ रहे नॉन-स्ट्राइकर को रन-आउट किया. क्रिकेट के नियमों के अनुसार उन्हें आउट करार दिया गया. भारतीय टीम की प्लेयर दीप्ति शर्मा ने भी जब पिछले साल इंग्लिश बल्लेबाज चार्ली डीन को ऐसे ही रन-आउट किया था तो अंग्रेज खिलाड़ियों ने काफी हाय तौबा मचाया था.
"साब!" "पान सिंह, विश्राम. बोलो." "साब, सभई मोर्चा पर जा रहे हैं, हम क्यों नहीं?" "फौज का कानून है. खिलाड़ियों को मोर्चे पे नहीं भेजते." "साब हमें एक पॉइंट बोलना है साब. साब, वहां गांव में, घर में का मुंह रह जायेगा दिखाने के लिये साब. साब एक पॉइंट बोलते हैं. जे आर्मी हमाए सारे मेडल लेले, हम स्पोर्ट्स छोड़ देते हैं, साब. साब जे एक मौका मिला है, साब. जे हम जाने नहीं देंगे. साब, एक बार हमको मोर्चा पर भेज दो, साब."
65 की लड़ाई के लिये सभी को मोर्चे पर भेजा जा रहा था. सूबेदार पान सिंह तोमर को इजाज़त नहीं मिली थी. वो मेजर मसंद से जंग पर जाने की परमीशन मांग रहा था लेकिन उसे नहीं भेजा गया. पान सिंह को बड़ा डर इस बात का था कि वो मोर्चे पर नहीं गया तो उसकी बदनामी होगी. वो आता भी उस जगह से था जहां उसने बचपन में ही बन्दूक चलाने का मन्त्र सीख लिया था - "कंधे पे लगा बट्टा, एक आंख मीच. निसाना लगा, खींच दे उंगली. चल पड़ी गोली." उसके मामा के पास चार-चार मार्क-थ्री थीं. मामा जी बाग़ी थे जिन्हें पुलिस पकड़ न पायी थी. इस बात के चलते उनकी बहुत इज़्ज़त थी. ऐसी ज़मीन से आने वाला पान सिंह अगर जंग पर नहीं जायेगा तो उसकी थू-थू तय थी. और ऐसा हुआ भी. ज़मीन के झगड़े में जब कलेक्टर साहब आये तो उनके सामने भंवर सिंह ने पान सिंह के बेटे हनुमंता को खरी-खोटी सुनाते हुए कहा- "बाप ने न मारी मेंढकी और बेटा तीरंदाज!"
कहने को तो ये कहानी फ़िल्म से उठायी गयी है लेकिन सच्चाई के बेहद क़रीब है. और इसमें घुला टॉक्सिकपना अभी क्रिकेट में दिखायी दे रहा है. क्रिकेट के खेल की शुरुआत 16वीं शताब्दी की बतायी जाती है और इसकी शासकीय ईकाई 1909 में बनी. समय-समय पर इस खेल की गवर्निंग बॉडीज़ इसके नियमों में सुधार सम्बन्धी फेरबदल करती रहती हैं. बीते कुछ वक़्त से एक नियम को लेकर बहस छिड़ी हुई है. क्रिकेट की किताबों में वैध क़रार दिये आउट करने के एक तरीक़े को बहस का केंद्र बना दिया गया है. रनिंग एंड पर खड़े बैटर को गेंद फेंके जाने से पहले क्रीज़ छोड़ देने पर रन-आउट करने को वैसी ही तुच्छता के साथ ट्रीट किया जा रहा है जैसे पान सिंह जंग पर न गया हो.
क्रिकेट की पिच के दोनों छोर पर कुछ लकीरें खींची जाती हैं. गेंदबाज़ी और बल्लेबाज़ी करने के दौरान इन लकीरों को खासी अहमियत दी जाती है. बल्लेबाज़ और गेंदबाज़, दोनों को इनके दायरे में रहकर ही सारे क्रियाकलाप करने होते हैं. गेंदबाज़ी वाले छोर पर रनिंग कर रहे बैटर को भी गेंद छोड़े जाने तक क्रीज़ में ही रहना होता है. यदि वो गेंद छोड़े जाने से पहले ही भाग रहा है, तो वो रन चुराने के क्रम में एडवांटेज लेने की कोशिश कर रहा होता है. ऐसे में, उसे रन-आउट होकर इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है. इसकी इजाज़त क्रिकेट के नियम देते हैं. एमसीसी के नियम संख्या 38.3.1 के मुताबिक़, यदि नॉन-स्ट्राइकर गेंद के प्ले में आने से लेकर गेंद फेंके जाने की स्थिति में आने से ठीक पहले अपनी क्रीज़ से बाहर होता/होती है, तो उसे रन-आउट किया जा सकता है. ऐसे में, यदि गेंदबाज़ विकेट पर गेंद फेंककर या जिस हाथ में गेंद है, उसके विकेट पर लग जाने पर, नॉन-स्ट्राइकर को रन-आउट माना जायेगा, चाहे अंत में गेंद फेंकी गयी हो या न फेंकी गयी हो.
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हाल ही में, ऐसे कई मौके सामने आये जहां गेंदबाज़ ने रनिंग एंड पर गेंद फेंके जाने से पहले दौड़ रहे नॉन-स्ट्राइकर को रन-आउट किया. क्रिकेट के नियमों के अनुसार उन्हें आउट क़रार दिया गया. हां, इक्का-दुक्का ऐसे भी मौके आये जहां फ़ील्डिंग टीम ने रन-आउट की अपील वापस ले ली. लेकिन जितनी भी बार नॉन-स्ट्राइकर आउट हुआ, ऐसे विकेट को 'सस्ते विकेट' की श्रेणी में डालना शुरू कर दिया गया. क्रिकेट बैजर नाम के एक क्रिकेट पॉडकास्ट के ट्विटर हैंडल ने कहा कि ये किसी की जेब से उसका बटुआ चुराने जैसा है. इनका कहना है कि उस शख्स को सावधान रहना चाहिये था, लेकिन फिर भी उसका बटुआ चुराना धोखेबाज़ी और कपट होगा और खेल में ऐसा कतई नहीं होना चाहिये. यानी, एक गेंदबाज़ पॉपिंग क्रीज़ से एक सेंटीमीटर पैर आगे रख दे, तो नो-बॉल देकर अगली गेंद पर बल्लेबाज़ को फ़्री-हिट दी जा सकती है लेकिन नॉन-स्ट्राइकर को क्रीज़ पहले छोड़ने पर आउट करना चोरी के समान डिक्लेयर कर दिया जायेगा.
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