
क्या समंदर भी बिकाऊ है? जानें खरीददार अपने हिस्से के समुद्र में क्या-क्या कर सकता है
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जमीन के दाम काफी बढ़ चुके. यहां तक कि जमीन का कोई हिस्सा बाकी न होने के चलते कई देश पानी में हाउसबोट जैसे कंसेप्ट पर जाने लगे हैं. तो क्या आगे चलकर हम समुद्र का टुकड़ा भी खरीद सकेंगे, जैसे अभी जमीन खरीदते हैं! इसका जवाब काफी उलझा हुआ है. बहुत सारे मुल्क समुद्र पर मालिकाना हक को लेकर काफी हंगामा करते रहे.
सत्तर के दशक में एक किताब ने हड़कंप मचा दिया था. मार्केट फॉर लिबर्टी नाम की इस बुक में लिखा था- 'जब तेल के लिए जमीन के हर हिस्से को खोदा जा रहा है तो कोई वजह नहीं, जो बड़े हिस्से को इसलिए छोड़ दिया जाए क्योंकि वो पानी के नीचे दबा हुआ है'. बात समंदर की हो रही थी. उसपर कब्जे की हो रही थी.
इस तरह के नियम बने देश लुक-छिपकर तो समुद्र पर अपने दावे का खेल रच रहे थे, लेकिन फिर खुलकर सामने आने लगे. कोई समुद्र छीनने की कोशिश करने लगा. कोई इसे बेचने की. तो कोई खरीदने की. समुद्र को लेकर मचे इसी झगड़े के बाद अस्सी की शुरुआत में कई पक्के नियम बने, जो तय करते हैं कि कोई देश कितनी दूर तक के समंदर को अपना कह सकता है.
क्या है पहली सीमा का नियम यूनाइटेड नेशन्स कन्वेंशन ऑन लॉ ऑफ द सी (UNCLOS) के मुताबिक देश की जमीनी सीमा से लगभग 12 मील यानी लगभग 22 किलोमीटर तक की समुद्री दूरी उसकी अपनी है. इस सीमा पर कोई भी देश, उसके जहाज या लोग बिना इजाजत नहीं आ सकते. अगर कोई चेतावनी के बाद भी ऐसा करे तो उसे मार गिराया जा सकता है, या गिरफ्तार किया जा सकता है. इस सीमा के भीतर आने को देश में घुसपैठ की तरह देखा जाता है.
ये है दूसरी सीमा इसके बाद के 2 सौ मील यानी लगभग पौने 4 सौ किलोमीटर का हिस्सा भी देश का अपना समुद्री टुकड़ा है. ये इकनॉमिक जोन है, जिसपर किसी तरह के व्यापार, मछली-पालन, खनन का फायदा उसी देश को मिलता है. मछुआरे यहां मछलियां पकड़ सकते हैं, लेकिन इस सीमा से बाहर जाने पर गिरफ्तारी का डर रहता है. बीच-बीच में ऐसे कई मामले आते हैं, जिसमें गलती से सीमा का अतिक्रमण होने पर मछुआरों को उस देश की सरकार ने जेल में डाल दिया. तब ये साबित करना होता है कि आपने जानबूझकर ऐसा नहीं किया.
इनके अलावा एक तीसरी सीमा भी है इसके तहत देश अगर ये साबित कर सके कि समुद्र के कुल 220 मील दूरी के बाद का भी हिस्सा उसके हक का है, तो इसपर उसका अधिकार माना जा सकता है. ये द्वीपों के मामले में ही माना जाता है. जैसे कई द्वीपों से मिलकर बना देश किसी उजाड़ द्वीप पर भी अपना दावा करता है, जो उसकी समुद्री सीमा के आसपास हो, या फिर जहां की वनस्पति उसकी वनस्पति से मिलती हो, तो ये क्लेम भी मान लिया जाता है.
चीन हरदम रहा विवादों में इसके बाद के हिस्से पर किसी एक देश नहीं, बल्कि पूरी दुनिया का अधिकार रहता है. इसपर अगर कोई विवाद हो तो उसका निपटारा संयुक्त राष्ट्र के जरिए हो सकता है. मिसाल के तौर पर चीन को लें तो वो समुद्र के बड़े हिस्से पर अपना हक जताता है. यहां तक कि वो दूसरे देशों की सीमा पर भी घुसपैठ की कोशिश करता रहा. इंडोनेशिया, फिलीपींस, वियतनाम जैसे देश इसपर लगातार आपत्ति जताते रहे. इस विवाद को दक्षिणी चीन सागर विवाद कहते हैं. चीन पर आरोप है कि वो समुद्र के उपजाऊ हिस्से को हड़पकर पैसे कमाना चाहता है. वहीं चीन मानता है कि कानून के तीसरे नियम के मुताबिक बड़ा समुद्र उसका है. फिलहाल विवाद चल ही रहा है.

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