किसान आंदोलन का एक सालः कृषि क़ानूनों की वापसी के बाद अब आगे क्या?
BBC
सरकार ने विवादित कृषि क़ानूनों को वापस ले लिया है तो क्या अब किसानों की समस्याएं पूरी तरह से ख़त्म हो जाएंगी?
एक साल तक चले किसानों के आंदोलन के बाद सरकार ने तीनों कृषि क़ानूनों को वापस ले लिया है और इसे 'किसानों की जीत' के रूप में भी देखा जा रहा है. हालांकि कृषि उपज पर न्यूनतम समर्थन मूल्य को क़ानूनी रूप से लागू करने के सवाल पर अब भी किसान संगठनों और सरकार के बीच रस्साकशी जारी है.
जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों क़ानूनों को वापस लेने के घोषणा की थी उस दिन उन्होंने ये भी कहा था कि सरकार ये संभावनाएं भी तलाश करेगी कि कृषि क्षेत्र में किस तरह से सुधार लाए जा सकते हैं.
लेकिन सवाल ये उठ रहे हैं कि क्या तीनों क़ानूनों की वापसी के बाद अब किसानों की समस्याएं पूरी तरह से ख़त्म हो जाएंगी?
वरिष्ठ पत्रकार पी साईनाथ कहते हैं कि अब किसी समिति से ज़्यादा कृषि आयोग गठित करने की ज़रूरत है.
उनका कहना है कि भारत के संविधान के निर्माताओं ने बहुत सोच समझकर कृषि को राज्य का विषय ही रहने दिया था क्योंकि भारत में अलग-अलग क्षेत्रों में अलग तरह की फसलें पैदा की जाती हैं और वहां की भौगोलिक और प्राकृतिक पृष्ठभूमि भी अलग ही हैं.