
किन हालात में किसी देश में तैनात होती है UN की शांति सेना, बांग्लादेश में जिसे भेजने की ममता बनर्जी ने की मांग
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पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने बांग्लादेश में यूएन पीसकीपिंग फोर्स तैनात करने की मांग की. उनका कहना है कि वहां अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए भारत को दखल देना चाहिए, और अपनी बात यूएन तक पहुंचानी चाहिए. ममता की चिंता तो जायज है लेकिन संयुक्त राष्ट्र की शांतिसेना यूं ही किसी देश में नहीं पहुंच जाती.
अगस्त में बांग्लादेश की तत्कालीन पीएम शेख हसीना ने भारत में शरण ली. इसके बाद से दोनों देशों के बीच तनाव गहराता ही जा रहा है. लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं कि वहां माइनोरिटी, खासकर हिंदू निशाने पर हैं. कुछ दिनों पहले बड़ा एक्शन लेते हुए वहां की सरकार ने इस्कॉन से जुड़े चिन्मय कृष्ण दास समेत कई धार्मिक अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद से भारत में भी गुस्सा बढ़ चुका है. लोग बांग्लादेशी नीतियों के खिलाफ प्रोटेस्ट कर रहे हैं. इसी कड़ी में वेस्ट बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने वहां यूएन शांति सेना भेजने की मांग कर डाली.
क्या है सीएम ममता का तर्क
ममता का कहना है कि बांग्लादेश से जब भी कोई नाव भारतीय सीमा में पहुंचती है, तो हम उनके साथ नरमी बरतते हैं. यहां तक कि कई और मामलों में रियायत देते हैं. वहीं सरकार बदलने पर वहां अल्पसंख्यकों पर हिंसा हो रही है. पीएम को खुद इस मामले को यूनाइटेड नेशन्स मंच पर रखते हुए वहां पीसकीपिंग फोर्स भेजने की बात करनी चाहिए. ममता अब तक बांग्लादेश में माइनोरिटी पर बोलने से बचती रहीं थीं कि ये दूसरे देश का मसला है. अब पहली बार वे खुलकर बोल रही हैं. लेकिन उनकी मांग में तकनीकी कमी है. पीसकीपिंग फोर्स की तैनाती यूं ही नहीं होती, बल्कि इसके लिए पूरा प्रोटोकॉल है.
क्या है शांति सेना, कैसे करती है काम जब भी सदस्यों देशों में आपसी या अंदरुनी तनाव होता है, संयुक्त राष्ट्र वहां अपनी शांति सेना भेजता है. इस सेना की नींव साल 1948 में डली थी, जिसका मकसद इजरायल और अरब देशों में शांति लाना था. बाद के समय में इसका दायरा बढ़ता चला गया. फिलहाल इसमें 120 से ज्यादा देशों के सैनिक तैनात हैं, जिनमें भारतीय लोग भी हैं. कुछ समय पहले ही जब इजरायल और हिजबुल्लाह में लड़ाई चल रही थी, जब लेबनान पर इजरायली हमलों के दौरान भारतीय सैनिकों की सुरक्षा पर भी चिंता जताई गई थी.
क्या शांति सेना युद्ध भी लड़ती है नहीं. पीसकीपिंग के लिए अलग-अलग देशों में काम करते सैनिक अपने देश में असल सैनिक होते हैं, लेकिन शांति सेना का हिस्सा होने के बाद वे लड़ाई में शामिल नहीं होते. उनका काम निष्पक्ष रहते हुए शांति के लिए काम करना है. हालांकि अगर उनपर या नागरिकों पर हमला हो तो उसे रोकने के लिए वे पूरी तरह तैयार रहते हैं. जैसे साठ के दशक में यूएन की शांति सेना ने कांगो में विद्रोही गुटों और विदेशी भाड़े के सैनिकों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की थी. इसी तरह नब्बे में रवांडा नरसंहार के दौरान शांति सेना ने युद्ध लड़ा था.

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