उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022: सपा, बसपा, भाजपा या कांग्रेस- दलितों का रुख किधर?
BBC
ऐसा दावा किया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में दलित मतदाताओं पर बसपा और मायावती की पकड़ कमज़ोर होती जा रही है और मैदान में मौजूद पार्टियां दावा कर रही हैं कि इन वोटरों का झुकाव उनकी तरफ़ हो रहा है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के 2018-20 के आंकड़ों से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश ने अनुसूचित जातियों के ख़िलाफ़ अपराधों में काफी अंतर से अपना शीर्ष स्थान बरक़रार रखा है. राज्य में 2018 में दर्ज 11924 ऐसे मामलों के मुक़ाबले 2019 में 11829 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2020 में यह आंकड़ा बढ़कर 12,714 हो गया. बिहार दूसरे और मध्य प्रदेश तीसरे नंबर पर हैं लेकिन अपराधों की संख्या यूपी की तुलना में आधी से भी कम हैं.
दलितों के ख़िलाफ़ बढ़ते अपराध और दलित के ख़िलाफ़ अत्याचार उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों का मुद्दा नहीं है.
सियासी पार्टियां इन अपराधों का सोशल मीडिया पर खंडन कर देते हैं. कुछ नेता पीड़ित परिवारों से मिल भी लेते हैं. यहाँ तक कि दलितों की पार्टी समझे जाने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती भी केवल ट्वीट से अपना विरोध प्रकट करती हैं.
समझा जाता है कि बसपा दलित समुदाय का, जो राज्य की आबादी का 21.6 प्रतिशत है, प्रतिनिधित्व करती है लेकिन मायावती के ख़िलाफ़ भी दलित अत्याचार का कड़ा विरोध न करने का आरोप है.
ऐसा दावा किया जा रहा है कि दलित वोटरों पर बसपा और मायावती की पकड़ कमज़ोर होती जा रही है. यदि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अब तक की मीडिया कवरेज का एक जायज़ा लें तो पता लगेगा कि राज्य में दलित वोटों के बिखरने की पूरी संभावना है जो कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के राजनीतिक आधार को कमज़ोर कर देगा. कुछ विश्लेषक तो चुटकी लेकर कहते हैं कि बसपा राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती एकमात्र ऐसी नेता होंगी जो अपने मतदाताओं को एक बार भी संबोधित किए बिना ही चुनाव में उनसे वोट मांगने जाएंगी.