
इजरायल का बिगड़ा खेल! सऊदी अरब अब दुश्मन से बढ़ा रहा दोस्ती
AajTak
इजरायल-हमास युद्ध से पहले ऐसी खबरें थीं कि इजरायल सऊदी के साथ सामान्यीकरण समझौता करने वाला है. लेकिन युद्ध के बाद सऊदी में इजरायल को लेकर विरोध शुरू हो गया और अब वो ईरान के साथ अपनी नजदीकियां बढ़ा रहा है.
एक साल पहले सऊदी अरब इजरायल को सामान्यीकरण समझौते के तहत मान्यता देने की तैयारी कर रहा था. माना जा रहा था कि इससे मध्य-पूर्व की स्थिति में मूलभूत परिवर्तन होगा और ईरान और उसके सहयोगी अलग-थलग हो जाएंगे. ऐसा कहा जा रहा था कि सऊदी अरब अगर इजरायल के साथ सामान्यीकरण समझौता करता है तो फिलिस्तीन के निर्माण में कोई प्रगति नहीं होगी बल्कि यह मुद्दा कहीं पीछे छूट जाएगा. लेकिन इजरायल-हमास शुरू होने और अब हमास नेता याह्या सिनवार की हत्या के बाद इजरायल-सऊदी सामान्यीकरण समझौता ठंडे बस्ते में चला गया है. अब इजरायल के बजाए सऊदी अरब अपने पारंपरिक कट्टर दुश्मन ईरान के साथ संबंधों को बेहतर बना रहा है.
सऊदी अरब साथ ही इस बात पर अब जोर दे रहा है कि जब तक इजरायल फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता नहीं देता, उसके साथ कोई कूटनीतिक समझौता नहीं होगा. सऊदी अरब के रुख में यह बदलाव बेहद अहम माना जा रहा है.
ईरान के साथ मजबूत होते सऊदी के संबंध
मध्यपूर्व में कूटनीतिक तनाव कम करने की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन यह वैसा नहीं है जैसा कि इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सोचा था. वो लगातार कहते हैं कि उनका प्रशासन सऊदी के साथ समझौता कर सकता है. लेकिन चीजें उनके कहे मुताबिक नहीं हो रही हैं बल्कि क्षेत्र के देशों के साथ ईरान के संबंध मजबूत हो रहे हैं.
इस महीने, खाड़ी देशों के विदेश मंत्रियों के साथ ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने मुलाकात की थी. इस मुलाकात में खाड़ी देशों ने ईरान को यह आश्वासन दिया कि इजरायल के साथ उसके युद्ध में वो तटस्थ रहेंगे. यह मुलाकात सदियों से चली आ रही सांप्रदायिक दुश्मनी को कम करने का काम करेगा.
इसके बाद ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने तनाव कम करने की कोशिश में इराक और ओमान सहित क्षेत्र के अन्य देशों की यात्रा करने से पहले सऊदी अरब का दौरा किया. मिस्र और तुर्की की यात्रा करने से पहले उन्होंने जॉर्डन का भी दौरा किया. ईरानी समाचार मीडिया के अनुसार, किसी ईरानी विदेश मंत्री ने 12 सालों में मिस्र का दौरा किया था.

भारत आने से पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने आजतक की मैनेजिंग एडिटर अंजना ओम कश्यप और इंडिया टुडे की फॉरेन अफेयर्स एडिटर गीता मोहन के साथ एक विशेष बातचीत की. इस बातचीत में पुतिन ने वैश्विक मुद्दों पर खुलकर अपनी राय दी, खासतौर पर रूस-यूक्रेन युद्ध पर. उन्होंने स्पष्ट किया कि इस युद्ध का दो ही समाधान हो सकते हैं— या तो रूस युद्ध के जरिए रिपब्लिक को आजाद कर दे या यूक्रेन अपने सैनिकों को वापस बुला ले. पुतिन के ये विचार पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह युद्ध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गहरी चिंता का विषय बना हुआ है.

कनाडा अगले साल PR के लिए कई नए रास्ते खोलने जा रहा है, जिससे भारतीय प्रोफेशनल्स खासकर टेक, हेल्थकेयर, कंस्ट्रक्शन और केयरगिविंग सेक्टर में काम करने वालों के लिए अवसर होंगे. नए नियमों का सबसे बड़ा फायदा अमेरिका में H-1B वीज़ा पर फंसे भारतीयों, कनाडा में पहले से वर्क परमिट पर मौजूद लोगों और ग्रामीण इलाकों में बसने को तैयार लोगों को मिलेगा.

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने आजतक के 'वर्ल्ड एक्सक्लूसिव' इंटरव्यू में दुनिया के बदलते समीकरणों और भारत के साथ मजबूत संबंधों के भविष्य पर खुलकर बात की. पुतिन ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी किसी के दबाव में काम नहीं करते. उन्होंने भारत को विश्व विकास की आधारशिला बताया और स्पेस, न्यूक्लियर तकनीक समेत रक्षा और AI में साझेदारी पर जोर दिया.

पुतिन ने कहा कि अफगानिस्तान की सरकार ने बहुत कुछ किया है. और अब वो आतंकियों और उनके संगठनों को चिह्नि्त कर रहे हैं. उदाहरण के तौर पर इस्लामिक स्टेट और इसी तरह के कई संगठनों को उन्होंने अलग-थलग किया है. अफगानिस्तान के नेतृत्व ने ड्रग्स नेटवर्क पर भी कार्रवाई की है. और वो इस पर और सख्ती करने वाले हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि वहां जो होता है उसका असर होता है.

भारत दौरे से ठीक पहले रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने आजतक को दिए अपने 100 मिनट के सुपर एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में भारत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, G8 और क्रिमिया को लेकर कई अहम बातें कही हैं. इंटरव्यू में पुतिन ने ना सिर्फ भारत की प्रगति की तारीफ की, बल्कि रणनीतिक साझेदारी को नई ऊंचाई देने का भरोसा भी जताया.

यूक्रेन युद्ध के बीच पुतिन का आजतक से ये खास इंटरव्यू इसलिए अहम हो जाता है क्योंकि इसमें पहली बार रूस ने ट्रंप की शांति कोशिशों को इतनी मजबूती से स्वीकारा है. पुतिन ने संकेत दिया कि मानवीय नुकसान, राजनीतिक दबाव और आर्थिक हित, ये तीनों वजहें अमेरिका को हल तलाशने पर मजबूर कर रही हैं. हालांकि बड़ी प्रगति पर अभी भी पर्दा है, लेकिन वार्ताओं ने एक संभावित नई शुरुआत की उम्मीद जरूर जगाई है.







