
आंसू गैस कैसे काम करती है, दुनियाभर में भीड़ को रोकने के लिए क्या-क्या किया जाता है?
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आंसू गैस से लेकर वॉटर कैनन जैसे कई तरीके हैं, जो भीड़ के कंट्रोल में इस्तेमाल होते आए. इन्हें क्राउड-कंट्रोल वेपन (CCW) कहते हैं. ये इस तरह से डिजाइन होते हैं कि शरीर के किसी खास अंग को ट्रिगर करें और थोड़ी देर के लिए लोगों को परेशान कर दें. इस दौरान पुलिस को लोगों पर काबू करने का समय मिल जाता है.
कृषि कानून पर किसान आंदोलन जारी है. इसी पर शंभू बॉर्डर पर किसान और सुरक्षाबल आमने-सामने हो गए. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे गए. तब से ही इसकी चर्चा हो रही है. आंसू गैस भारत ही नहीं, ज्यादातर देशों में एंटी-प्रोटेस्ट वेपन बना रहा. इसके अलावा भी कई चीजें हैं, जो प्रदर्शनकारियों या दंगाइयों को डराने के काम आती हैं.
केमिकल इरिटेंट्स हैं टॉप पर
आंसू गैस इसी में शामिल है. इसमें वे केमिकल होते हैं, जिससे म्यूकस मेंब्रेन में दिक्कत होती है, आंख-नाक से पानी आता है. छींक और सांस लेने में दिक्कत हो सकती है. ये शॉर्ट-टर्म रहता है. थोड़ी देर बाद अपने-आप ठीक हो जाता है. कई और केमिकल इरिटेंट होते हैं, जो स्किन पर असर डालते हैं. इससे खुजली और जलन होने लगती है. इस दौरान प्रोटेस्ट करने वाले तितर-बितर जाते हैं.
वॉटर कैनन भी आजमाया हुआ हथियार इसमें पानी की तेज धार एक खास दिशा में छोड़ी जाती है, जो प्रदर्शन को बिखरा दे. वैसे वॉटर कैनन ज्यादातर आग को कंट्रोल करने के लिए इस्तेमाल होते रहे, लेकिन दंगा या प्रोटेस्ट कंट्रोल में भी इसका जमकर उपयोग होता है.
तेज रोशनी और शोर का अटैक

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