
अबकी बार और ज्यादा मार... ब्रह्मोस-I ने पाकिस्तान में मचाई तबाही, अब ब्रह्मोस-II की तैयारी में जुटा भारत
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ब्रह्मोस-II परियोजना का कॉन्सेप्ट लगभग एक दशक पहले ब्रह्मोस एयरोस्पेस द्वारा लाया गया था. लेकिन इस प्रोजेक्ट को पहले कई बाधाओं का सामना करना पड़ा था. रूस कुछ बंदिशों की वजह से इस मिसाइल का तकनीक भारत के साथ साझा नहीं करना चाहता था. इसके अलावा इसमें खर्चा भी बहुत ज्यादा आ रहा था. लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने इन बाधाओं को पार करने का निश्चय किया है.
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के एयरस्पेस का विनाश करने वाले ब्रह्मोस मिसाइल दुनिया की सबसे घातक सुपरसोनिक मिसाइलों में से एक बन गए हैं. दुश्मन के खेमे में भीषण विध्वंस मचाने की इस विरासत को आगे बढ़ाते हुए भारत अब अपनी अगली पीढ़ी की हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस-II के विकास में तेजी लाने के लिए तैयार है. DRDO द्वारा स्वदेशी स्क्रैमजेट इंजन तकनीक में महत्वपूर्ण प्रगति हासिल करने के बाद ब्रह्मोस-II के डेवलपमेंट प्रक्रिया को तेजी मिली है.
सूत्रों के अनुसार ये एडवांस ब्रह्मोस-II मिसाइल की गति मैक 8 (ध्वनि की गति से 8 गुना अधिक) होगी. और इसे इस तरह डिजाइन किया जा रहा है ताकि इसकी मारक क्षमता 1,500 किलोमीटर हो.
मौजूदा ब्रह्मोस की अधिकतम स्पीड 3.5 मैक है. इसकी मारक क्षमता 290 से 800 किलोमीटर तक है. ब्रह्मोस मिसाइल इस समय दुनिया की सबसे तेज सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइलों में से एक है. ब्रह्मोस-II हाइपर सोनिक मिसाइल होगी. सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइल की गति 1 से 5 मैक तक होती है. जबकि हाइपर सोनिक मिसाइलों की गति 5 से 12 मैक तक होती है.
रक्षा सूत्रों के अनुसार, ब्रह्मोस-II के संयुक्त विकास पर भारत और रूस के बीच उच्च स्तरीय चर्चा फिर से शुरू होने वाली है. इस हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल का लक्ष्य मैक 6 से अधिक गति प्राप्त करना है और यह रूस की 3M22 जिरकोन मिसाइल से प्रेरित होगी, जो एक स्क्रैमजेट-संचालित हाइपरसोनिक मिसाइल और परमाणु शक्ति से संपन्न मिसाइल है.
ब्रह्मोस-II परियोजना, जिसकी संकल्पना लगभग एक दशक पहले ब्रह्मोस एयरोस्पेस द्वारा की गई थी, को पहले कई बाधाओं का सामना करना पड़ा था. इन बाधाओं में रूस की ओर से उन्नत हाइपरसोनिक तकनीकी को भारत के साथ साझा करने की अनिच्छा और उच्च लागत जैसी चिंताएं शामिल थीं.
ब्रह्मोस-II परियोजना की घोषणा सबसे पहले 2008 में की गई थी और उम्मीद थी कि इसका ट्रायल 2015 तक हो जाएगा. हालांकि, कई कारणों से इस परियोजना में देरी हुई. जिसमें मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (MTCR) का सदस्य होने के नाते रूस शुरुआत में 300 किलोमीटर से ज़्यादा की दूरी वाली तकनीक साझा नहीं कर सकता था, 2014 में भारत के MTCR का सदस्य बनने के बाद यह स्थिति बदल गई.

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