
JNU में लेफ्ट का किला दरकता क्यों नहीं? ओएन शुक्ला से लेकर अदिति मिश्रा तक की कहानी
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जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में 'लेफ्ट यूनिटी' ने चारों पदों पर जीत दर्ज की, जिससे कैंपस में वामपंथ का दबदबा फिर साबित हुआ. 1971 में छात्रसंघ गठन के बाद से जेएनयू लेफ्ट राजनीति का गढ़ रहा है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, सामाजिक न्याय, आलोचनात्मक शिक्षा और छात्र एकजुटता ने इस विचारधारा को मजबूत बनाए रखा है.
दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) के छात्रसंघ चुनाव में एक बार फिर लेफ्ट के 'लाल सलाम' नारे को स्टूडेंट्स ने सिर-आंखों पर चढ़ा लिया. ‘लेफ्ट यूनिटी’ गठबंधन ने 6 नवंबर को जेएनयू स्टूडेंट यूनियन (JNUSU) के सेंट्रल पैनल की चारों पोस्ट पर अपना परचम लहराया. अदिति मिश्रा प्रेसिडेंट, के. गोपिका बाबू वाइस प्रेसिडेंट, सुनील यादव जनरल सेक्रेटरी और दानिश अली जॉइंट सेक्रेटरी चुने गए हैं. राइट-विंग को सेंट्रल पैनल में कोई जगह नहीं मिल सकी है. इसी के साथ, एक बार फिर साबित हो गया कि जेएनयू स्टूडेंट पॉलिटिक्स पर लेफ्ट का दबदबा अब भी बरकरार है.
इस चुनाव में 'लेफ्ट यूनिटी' गठबंधन में ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया और डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फ्रंट शामिल थे. इसी साल अप्रैल में हुए पिछले छात्रसंघ चुनावों में लेफ्ट यूनिटी में फूट पड़ गई थी, जिससे एक सीट (जॉइंट सेक्रेटरी) एबीवीपी के हिस्से गई थी.
ऐतिहासिक रूप से जेएनयू लेफ्ट (वाम) का गढ़ रहा है, जहां अलग-अलग संगठन एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ते रहे हैं. जेएनयू छात्र संघ चुनाव में सिर्फ एक बार ऐसा हुआ है, जब एबीवीपी ने प्रेसिडेंट पद पर जीत हासिल की.
अप्रैल 1969 में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई. सितंबर 1971 में छात्रसंघ (JNUSU) की स्थापना हुई और नवंबर में पहला चुनाव हुआ. ओएन शुक्ला (ON Shukla) छात्रसंघ के पहले अध्यक्ष बने. 1972 के चुनाव में वीसी कोशी (VC Koshy) स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडेंट बने.
पहले चुनाव से लेकर 1978 तक, लेफ्ट विंग संगठन स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) का कैंपस पर दबदबा रहा. एसएफआई, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) का स्टूडेंट विंग है. SFI के उम्मीदवारों ने 1971, 1972, 1973, 1974, 1975, 1976, 1977 और 1978 में सभी चार सेंट्रल पैनल पोस्ट पर फतह हासिल की. साल 1972 में बांग्लादेश जंग की वजह छात्रसंघ चुनाव नहीं हुए थे.
1975-76 में डीपी त्रिपाठी जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडेंट बने, जिन्हें जेएनयू के आपातकाल विरोधी चेहरे के तौर पर भी पहचाना गया. तेज़, हाज़िरजवाब और पैनी नज़र वाले डीपी त्रिपाठी 1970 के दशक में इमरजेंसी के ख़िलाफ़ छात्रों के विरोध का चेहरा बने.

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