
5 हादसों में 50 मौतें... चलते-फिरते 'ताबूत' क्यों बन रहीं स्लीपर बसें, aajtak का रियलिटी चेक
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स्लीपर बसें चलते-फिरते ‘मौत का ताबूत’ बनती जा रही हैं. पांच बड़ी दुर्घटनाओं ने 50 से ज्यादा जिंदगियां निगल लीं, लेकिन हालात अब भी जस के तस हैं. जयपुर से लेकर लखनऊ और दिल्ली तक, परिवहन विभाग के नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. कहीं बसों में इमरजेंसी गेट नहीं हैं, तो कहीं फायर सिलेंडर नदारद है. आखिर जिम्मेदार कौन है?
28 अक्टूबर को जयपुर दिल्ली हाईवे पर राजस्थान के मनोहरपुर में एक बस हाईटेंशन लाइन की चपेट में आ गई, इससे बस में आग लग गई और 3 लोगों की जान चली गई. इससे पहले 14 अक्टूबर को ही जैसलमेर-जोधपुर हाइवे पर स्लीपर बस में आग लगी, जिसमें 26 यात्रियों की मौत हो गई. वहीं 24 अक्टूबर को आंध प्रदेश में बस बाइक से टकराकर आग का गोला बनी, जिसमें 20 लोग जिंदा जल गए.
ये सारे हादसे स्लीपर बसों में हुए हैं. अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इन स्लीपर बसों में ऐसी क्या खामी हैं कि ये सड़क पर चलते फिरते मौत के ताबूत बन रही हैं. आजतक ने देशभर में इस बसों का रिएलिटी चेक किया है. हमने अपनी पड़ताल में ये जानने की कोशिश की कि आखिर ये बसें मानकों को क्यों पूरा नहीं कर रही हैं. क्या करप्शन की वजह से ये बसें फर्जी फिटनेस का सर्टिफेकेट हासिल कर रही हैं? और आम लोगों की जान से खिलवाड़ कर रही हैं?
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जयपुर का रिएलिटी चेक... 15 दिनों में दो बड़े हादसे
राजस्थान में हर दिन 8000 स्लीपर बसों का संचालन होता है, जिनमें करीब सवा 2 लाख यात्री सफर करते हैं. जयपुर से दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, इंदौर, सूरत, अहमदाबाद, भोपाल, जोधपुर, उदयपुर, कोटा जैसे शहरों के लिए स्लीपर बसें चलती हैं.
केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ने 2016 में स्लीपर बसों में पीछे की तरफ इमरजेंसी गेट लगाने का आदेश दिया था. लेकिन अब जयपुर से संचालित होने वाली इन बसों की स्थिति बिल्कुल अलग है. मध्य प्रदेश के मुरैना से आई बस में ना पीछे कोई इमरजेंसी गेट है और ना ही सेफ्टी का इंतजाम है.

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