
370 हटाया, विकास का रास्ता दिखाया, भारत की बदली युद्ध नीति... जानें- 11 वर्षों में मोदी सरकार ने लिए कौन-कौन से ऐतिहासिक फैसले
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2014 में जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, उन्होंने देश से मन की बात करना कभी बंद नहीं किया. वो देश के हर हिस्से के हर व्यक्ति से कनेक्ट होते हैं और सलाह-सुझाव भी देते हैं.
नरेंद्र मोदी बतौर भारत के प्रधानमंत्री आज 11वां साल पूरा कर रहे हैं. इस मौके पर हम इन 11 वर्षों में उनकी सरकार के 11 कड़े और बड़े फैसलों की बात करेंगे. वे फैसले जिनके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था कि लिए जा सकते हैं. फैसले जो मील का पत्थर बने, जिन्होंने कभी हमारा जीवन बदला तो कभी जीने का तरीका. इन 11 वर्षों की यात्रा में कई पड़ाव आए मत, बहुमत, अल्पमत, सर्वमत का सियासी गुणा भाग हुआ. पर इन बदलती परिस्थितियों में भी नरेंद्र मोदी का फैसले लेने का अंदाज नहीं बदला.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद को प्रधान सेवक कहते रहे और ऐसे निर्णय लेते रहे जो उनके अनुसार राष्ट्र सेवा के लिए अनिवार्य थे, चाहे इसके लिए उन्हें सियासी आलोचना झेलनी पड़े या वैश्विक दबाव. सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं झुकने दूंगा. इसे नियति कहें या विडंबना, पीएम मोदी को अपने तीनों कार्यकाल के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा की बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. लेकिन हर बार उनका पलटवार एक ऐसी अपरंपरागत परंपरा स्थापित कर गया जिसने दुश्मन का सर कुचल दिया.
ऑपरेशन सिंदूर ने उजाड़े आतंक के हेडक्वार्टर
हमने आतंकवादियों को मिट्टी में मिलाने के लिए भारत की सेनाओं को सरकार से पूरी छूट मिलते देखी. आतंकियों ने हमारी बहनों का सिंदूर उजाड़ा, इसलिए भारत ने आतंक के हेडक्वार्टर उजाड़ दिए. भारत के इन हमलों में 100 से अधिक खूंखार आतंकवादियों की मौत हुई. पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने 26 महिलाओं का सुहाग उजाड़ा था. प्रधानमंत्री मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर के जरिए उन सूनी मांगों को ऐसा न्याय दिलाया कि पाकिस्तान की रूह कांप गई. दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं जो एक परमाणु संपन्न मुल्क पर ऐसा हमला करने की हिम्मत रखता हो.
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आतंकवादियों के खिलाफ भारत की कार्रवाई अब तक पीओके तक सीमित रहती थी, लेकिन इस बार पीओके सहित पाकिस्तान के 100 किलोमीटर अंदर तक आतंकवादियों और उनके ठिकानों को ध्वस्त कर दिया गया. ये फैसला कड़ा भी था और अप्रत्याशित भी. ये नेतृत्व का ही हौसला था, जिसने पाकिस्तान के पलटवार के जवाब में भारतीय वायु सेना को उसके 11 एयरबेस तबाह करने की आजादी दी. ध्यान देने वाली बात ये है कि युद्ध की परिस्थितियों में ये सामान्य माना जा सकता है. पर आतंक के खिलाफ कार्रवाई में ऐसी आक्रामकता बेमिसाल थी.

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