
हिंदुओं पर अत्याचार, रोहिंग्याओं को शरण... बांग्लादेश के कट्टरपंथियों का ये है डबल गेम
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बांग्लादेश में हालिया हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता के कारण हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा गंभीर खतरे में है. शेख हसीना सरकार के पतन के बाद इस्लामिक कट्टरपंथियों के हमले बढ़े हैं, जिससे कई हिंदू परिवार विस्थापित हुए हैं. हिंदुओं पर अत्याचार न रोक पाने वाला बांग्लादेश म्यांमार से आए रोहिंग्या मुसलमानों को बसाने का दावा करता है.
बांग्लादेश में हालिया हिंसा में हिंदुओं को निशाना बनाए जाने की घटनाओं ने देश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. इंकलाब मंच के भारत विरोधी नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद बांग्लादेश में भड़की हिंसा में भारत विरोधी भावनाएं फैलाई जा रही हैं और अल्पसंख्यकों को टार्गेट किया जा रहा है. हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की हत्या इसका सबसे भयावह उदाहरण है.
वहीं दूसरी ओर, बांग्लादेश की सरकार रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देकर मानवाधिकारों की दुहाई दे रही है. हालिया हिंसा ने बांग्लादेश में कट्टरपंथी संगठनों और मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के 'डबल गेम' पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
सबसे पहले बात कर लेते हैं दीपू दास की जो कपड़े की एक फैक्ट्री में काम करता था और किराए के मकान में रहता था. भीड़ ने उस पर ईशनिंदा के आरोप में हमला कर दिया और पीट-पीटकर मार डाला. उसकी हत्या के बाद कट्टरपंथियों ने उसके शव को पेड़ से लटकाकर आग लगा दी.
इस घटना के बाद चटगांव जिले में एक हिंदू परिवार के घर पर आग लगा दी गई जिसमें घर का सारा सामान जल गया और पालतू जानवर मारे गए. घटनास्थल से हिंदू समुदाय को निशाना बनाते हुए 'लास्ट वार्निंग' लिखा हुआ एक धमकी भरा पोस्टर भी मिला है. इससे वहां के अल्पसंख्यकों में डर और दहशत का माहौल है.
बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद से हिंदुओं पर हमले बढ़े हैं. जुलाई-अगस्त 2024 में छात्र आंदोलन के दौरान शेख हसीना की सरकार गिरा दी गई थी जिसके बाद वो भारत भाग आई थीं.
इसके बाद बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ जिसपर इस्लामिक कट्टरपंथियों का प्रभाव है. हालिया घटनाएं इस बात की ओर इशारा करती हैं कि सरकार न केवल हिंदुओं की सुरक्षा में नाकाम रही है, बल्कि कई मामलों में कट्टरपंथी तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई से भी बचती नजर आई है.

अमेरिका के प्रमुख अखबार The New York Times में प्रकाशित एक रिपोर्ट ने बांग्लादेश में 19 दिसंबर को हुई मोब लिंचिंग की घटना को लेकर बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है. यह रिपोर्ट 27 वर्षीय दीपू चंद्र दास के खिलाफ सत्ता की कट्टरपंथियों द्वारा की गई हिंसा पर आधारित थी, लेकिन रिपोर्ट में इस घटना को सीधे तौर पर प्रस्तुत करने के बजाय इसे दक्षिण एशिया के धार्मिक असहिष्णुता से जुड़े मुद्दे के तहत पेश किया गया.

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