हिंदुओं के स्वस्तिक को क्या हिटलर ने वाकई अपना चिन्ह बनाया था, क्या है स्वस्तिक और नाजियों के 'हकेनक्रेज' में फर्क?
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बेहद प्राचीन और शुभ कहलाते स्वस्तिक को हिटलर न सिर्फ अपनी पार्टी का चिन्ह बनाया, बल्कि अपनी क्रूरता से उसकी पहचान तक को बदरंग बना दिया. हालात ये हुए कि पूरे यूरोप में स्वस्तिक से नफरत की जाने लगी. एक वक्त ऐसा भी आया, जब खुद जर्मनी ने इस चिन्ह पर बैन लगवाने की कोशिश की. लेकिन सवाल ये है कि स्वस्तिक से मिलते-जुलते चिन्ह को आखिर हिटलर ने क्यों अपनाया?
भारत या दुनिया में रहने वाले करोड़ों हिंदू किसी धार्मिक मौके पर स्वस्तिक बनाते हैं. ये अपने-आप में बहुत पवित्र और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. जैन और बौद्ध मान्यता में भी सदियों से इसकी धार्मिक मान्यता है. ये तो हुआ भारतीय कनेक्शन, लेकिन दुनिया के कई देशों में इसका अस्तित्व दिखता रहा. ये चीन, जापान, मंगोलिया, ब्रिटेन और अमेरिका में भी छाया रहा.
किस्मत लाने वाला चिन्ह माना जाता था वहां भी इसे गुडलक से जोड़ा जाता था. यही कारण है कि दवाओं से लेकर कपड़े-गहने बनाने वाली बहुत सी कंपनियां भी रंग में हेरफेर करके स्वस्तिक का उपयोग करती थीं. लेखक स्टीवन हेलर ने अपनी किताब 'द स्वस्तिक: सिंबल बियॉन्ड रिडेम्पशन' में इसका जिक्र किया है कि कैसे भारत से दूर-दराज तक कोई नाता न रखने वाले देश भी स्वस्तिक के चिन्ह को खूब मानते थे.
अमेरिकी सेना भी करती थी उपयोग 20वीं सदी में अमेरिकी आर्मी की 45वीं इन्फेन्ट्री अपने प्रतीक की तरह स्वस्तिक का इस्तेमाल करने लगी. ये लाल बैकग्राउंड पर पीले रंग का चिन्ह था. दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत से पहले तक ये प्रतीक अमेरिकी सेना के पास रहा. इसी बीच नाजी पार्टी ने इसे अपना लिया और ऐसे अपनाया कि पवित्रता के चिन्ह को ही संदेह के दायरे में खड़ा कर दिया.
हिटलर ने क्यों अपनाया इसे? जानकार बताते हैं कि नाजियों द्वारा स्वस्तिक को अपनाया जाना महज एक संयोग है. असल में तब दुनियाभर के स्कॉलर भारत में पढ़ने के लिए आते थे. बहुत से जर्मन स्कॉलर भी आए और वैदिक अध्ययन करते हुए मान लिया कि भारत और जर्मनी के लोग जरूर आर्यन संतानें हैं. इस संबंध को पक्का करने के लिए हिटलर की पार्टी ने स्वस्तिक का आइडिया ले लिया. इसे हकेनक्रुएज कहा गया.
चर्च के क्रॉस से आया होगा आइडिया अपनी किताब 'द साइन ऑफ क्रॉस; में डॉ. डेनियल लाफेरिअर ने दावा किया था कि ऑस्ट्रिया में रहते हुए हिटलर ने हुक्ड क्रॉस देखा होगा और बचपन में देखे इस प्रतीक को उसने तोड़-मरोड़कर अपना लिया होगा. वजह जो भी हो, लेकिन हिलटर ने कभी इसपर कोई साफ बात नहीं की और केवल अंदाज ही लगाए जाते रहे.
कैसे अलग है स्वस्तिक से हकेनक्रेज? ये लाल बैकग्राउंड पर सफेद गोले के भीतर एक काला चिन्ह है, जिसे जर्मनी में हकेनक्रेज के अलावा हुक्ड क्रॉस भी कहते हैं. स्वस्तिक से मिलता-जुलता ये चिन्ह दाहिनी तरफ से 45 डिग्री पर रोटेट किया हुआ है और चारों ओर लगने वाले 4 बिंदु भी इसमें नहीं हैं. हिटलर ने इसे अपनी नस्ल को बेहतर बताने से जोड़ते हुए कहा कि सारी दुनिया के आर्य इस प्रतीक के नीचे जमा हो जाएं. ये अपील वो समय-समय पर करता रहा और जल्द ही हकेनक्रेज से सारी दुनिया नफरत करने लगी.