हलाल प्रॉडक्ट पर योगी की स्ट्राइक क्या पोलिटिकल थी? कोई दल ताल ठोंककर विरोध करने क्यों नहीं आया?
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यूपी में हलाल सर्टिफिकेशन वाली वस्तुओं के उत्पादन पर रोक का फैसला ऐसी ही अचानक नहीं आ गया. एफआईआर दर्ज कराने की टाइमिंग और यूपी सरकार आनन फानन में एक्शन इस बात की गवाही देते हैं कि यह एक पोलिटिकल स्ट्राइक थी.
राम जन्मभूमि से लेकर गाजा-फिलिस्तीन तक, कन्हैया लाल हत्याकांड से लेकर लव जिहाद के रोक वाले कानून तक बीजेपी के हर कदम का विरोध करने के लिए विपक्ष पूरी तरह तैयार रहता है. पर उत्तरप्रदेश में हलाल सर्टिफिकेशन के खिलाफ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की स्ट्राइक के खिलाफ न विपक्ष ही कुछ बोलने को तैयार है और न ही देश की तथकथित लिबरल ब्रिगेड. हालांकि विपक्ष इसे सांप्रादायिक ध्रुवीकरण की कोशिश का मुद्दा बना सकता था. पर सभी दलों ने आंख मूंदे रखने में ही अपनी भलाई समझी. समाजवादी पार्टी के दूसरी और तीसरी श्रेणी के नेताओं ने जरूर कई जगह विरोध जताया है पर अखिलेश यादव के लेवल पर अभी भी इस मुद्दे को लेकर खामोशी ही है. दूसरी ओर कांग्रेस और अन्य दलों के नेताओं ने भी इस मुद्दे पर अपनी जबान पर ताला लगा रखा है. देश के 5 राज्यों में विधानसभा चुनावों के बीच इस तरह का फैसला यूपी सरकार अगर करती है तो निश्चित है कि भारतीय जनता पार्टी को इससे हिंदुओं के वोट के ध्रुवीकरण का फायदा हो सकता है. इसी तरह विपक्ष के लिए भी विशेषकर उन दलों के लिए जो राम जन्मभूमि तक का विरोध कर चुके हैं उनके लिए भी अपने वोटर्स को एकजुट करने का मौका था पर ऐसा नहीं हुआ. आखिर वो कौन से कारण रहे जिसके चलते विपक्ष की आवाज इस मुद्दे के लिए बुलंद नही हुई. क्या ये फैसला योगी का पोलिटिकल स्ट्राइक था? क्या भविष्य में लोक सभा चुनावों तक यह मामला चुनावी मुद्दा बन सकता है.
हलाल प्रमाणित वस्तुओं पर बैन के पीछे क्या तर्क हैं
हलाल प्रमाणित वस्तुओं के बैन करने का समर्थन करने वालों का कहना है कि पहले हलाल सर्टिफिकेशन केवल खाद्य उत्पादों के लिए दिए जाते थे. धीरे-धीरे यह मेडिकल इक्विपमेंट, दवाइयां, कॉस्मेटिक, चावल-दाल तक में दिया जाने लगा.हलाल पर बैन समर्थकों का कहना है कि हलाल सर्टिफिकेशन शुद्ध रूप से एक समुदाय विशेष की बिक्री को बढ़ाने और दूसरे समुदायों की बिक्री को घटाने के लिए किया जा रहा है. अगर बाजार में कोई उत्पाद एक वर्ग विशेष में हलाल सर्टिफिकेशन के जरिए जाता है तो जाहिर सी बात है कि वह लोग सिर्फ और सिर्फ उसी तरह के उत्पाद खरीदेंगे. दूसरे हलाल सर्टिफिकेशन देने के नाम पर भी भारी कमाई होने लगी है. सबसे दुखद बात यह है कि इस तरह की कमाई का पैसा बाद में टेरर फंडिंग के लिए, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के लिए भेजा जा रहा है.
हलाल के खिलाफ एक्शन की टाइमिंग देखिए
हलाल के खिलाफ इतना बड़ा स्टेप यूपी सरकार ने अचानक क्यों लिया? यह सवाल तो बनता ही है. न किसी हिंदू संगटन ने इसके खिलाफ कोई अभियान चलाया और न ही कोई धरना प्रदर्शन आंदोलन ही देखने को मिला.अचानक प्रदेश में हलाल प्रमाणित उत्पादों की बिक्री को लेकर भाजपा के युवा मोर्चा के पूर्व क्षेत्रीय उपाध्यक्ष शैलेंद्र कुमार शर्मा की शिकायत पर पुलिस ने हजरतगंज कोतवाली में 17 नवंबर सायं 6 बजकर 21 मिनट पर एफआईआर दर्ज कराई थी. उसके ठीक दूसरे दिन 18 नवंबर को योगी सरकार एक्शन ले लेती है. जाहिर है कि इतनी जल्दबाजी में लिए गए फैसले से राजनीति की गंध तो आएगी ही. 17 नवंबर को मध्यप्रदेश में चुनाव समाप्त हुए हैं. राजस्थान और तेलंगाना के चुनावों में बीजेपी को हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की जरूरत हो सकती है. विपक्ष के पास इस आधार पर विरोध करने का पर्याप्त अवसर था . पर विपक्ष ने इस मुद्दे पर चुप्पी साधकर अपनी महत्वपूर्ण रणनीतिक समझ दिखाई है. अगर विपक्ष इसे मुद्दे को तूल देता तो निश्चित रूप से बीजेपी के हाथों में आज खेल रहा होता.
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