सिख गुरु जिन्होंने कश्मीरी हिंदुओं के लिए अपनी कुरबानी दे दी
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गुरु तेग बहादुर सिंह के सामने एक के बाद एक तीन साथियों को उनके सामने मारा गया। किसी को जिंदा आग के हवाले कर के तो किसी को जलते तेल में जिंदा डाल के. और फिर अंत में उन्हें भी सिर काट कर मार दिया गया. लेकिन उन्हें इसका भय कहाँ था. ऐसी कुर्बानियाँ व्यर्थ कहाँ जाती हैं, इतिहास ने उसके कुछ ही समय बाद मुग़ल साम्राज्य का पतन भी देखा. जानिए किस्से गुरु तेग बहादुर के.
मुग़ल शासक औरंगजेब के सिर पर कई नरसंहारों के कलंक हैं. लेकिन इसमे से एक कलंक अब तक इतिहास याद रखे हुए है. एक सिख गुरु को दिल्ली बुलाया गया. जो अपने लिए भी नहीं बल्कि कश्मीरी हिंदूओ पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ खड़े थे. औरंगजेब ने उनसे कहा कि इस्लाम अपना लें या तो कोई ऐसा चमत्कार दिखाएं जिससे उनकी शक्तियां दिख जाएं. लेकिन उन्होंने इस बादशाह की कोई बात नहीं मानी. गुरु के सामने एक के बाद एक तीन साथियों को उनके सामने मारा गया। किसी को जिंदा आग के हवाले कर के तो किसी को जलते तेल में जिंदा डाल के. और फिर अंत में उन्हें भी सिर काट कर मार दिया गया.
लेकिन उन्हें इसका भय कहाँ था. इतिहास की सबसे बड़ी शहादतों में से एक देने वाले इस संत का नाम था गुरु तेग बहादुर सिंह. सिखों के नौवें गुरु और छठे सिख गुरु हरगोविंद सिंह के सबसे छोटे बेटे. लेकिन ऐसी कुर्बानियाँ व्यर्थ कहाँ जाती हैं, इतिहास ने उसके कुछ ही समय बाद मुग़ल साम्राज्य का पतन भी देखा.
सिख गुरुओं का इतिहास कहीं से उठा कर देखने पर संघर्ष के बगैर नहीं दिखता. गुरु नानक से लेकर गुरु गोविंद सिंह तक सब अपने समाज, धर्म और देश दुनिया में फैली कुरीतियों से लड़ते रहे, शहादतें दी. इसी फेहरिस्त में आते हैं गुरु तेग बहादुर सिंह. कश्मीर लेकर असम तक के अन्याय के लिए खड़े रहे. शायद इसीलिए उन्हें हिन्द की चादर भी कहा गया. हालांकि इंडिया टुडे टीवी में सीनियर एडिटर हरमीत शाह सिंह मानते हैं कि ऐसा कहना उनके योगदान को एक सीमा में समेट देना है, जबकि गुरु तेग बहादुर का काम किसी एक धर्म या देश से परे केवल मानवता के लिए था.
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अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार एक अप्रैल 1621 को जन्मे थे गुरु तेग बहादुर. पिता थे सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह.माँ थीं नानकी. तेग बहादुर बचपन से तेग बहादुर नहीं थे. उनका पहला नाम था त्याग मल. उनके त्यागमल से तेग बहादुर बनने की कहानी और कारण भी बड़ा दिलचस्प है. इसी दौर की एक और घटना है जिसका जिक्र हकम सिंह और जसविन्दर सिंह की किताब इंडियाज गुरु मार्टीयर गुरु तेग बहादुर में मिलता है जिसका प्रभाव तेग बहादुर के जीवन पर हमेशा रहा. तब तेग बहादुर 7 साल के थे. उनके भाई अटल सिंह थे नौ साल थे. कहा जाता है उस वक्त उनके भाई ने अपने एक दोस्त जो मर गया था, जिंदा कर दिया. लोगों के लिए तो ये एक जादू था लेकिन उनके पिता हर गोविंद के लिए ये चिंता का विषय. उन्होंने अटल को बुलाया और उन्हें ‘हुकम राजाई चलना’ का कन्सेप्ट समझाया. गुरु हर गोविंद सिंह ने कहा कि ईश्वर की इच्छा के अनुसार ही चलना चाहिए जिसे अटल सिंह ने तोड़ दिया था. इतना ही सुनने के बाद अटल सिंह ने पिता के सामने सिर झुकाया और अमृतसर के तालाब चले गए. वहाँ उन्होंने समाधि ले ली. 7 साल छोटे तेग बहादुर के लिए ये डरावना था लेकिन एक चीज वो समझ चुके थे कि ईश्वर के इच्छा के अनुसार न चलने के बाद मरना भी पड़ सकता है. अपने बचपन में ऐसी ही घटनाएं देख चुके तेग़बहादुर ताजिंदगी शांत रहे. साल 1644 में पिता और गुरु हरगोविंद सिंह के देहांत के बाद तेग बहादुर बकाला चले गए थे. वहाँ लंबे समय से शांत और गुमनाम जीने लगे थे. सीनियर जर्नलिस्ट विपिन पबबी कहते हैं कि उनके शांत स्वभाव के कारण ही वो पिता की मौत के बाद गुरु नहीं बने. न ही उन्होंने कोई दिलचस्पी दिखाई.
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