
संघ, साउथ और सामाजिक समीकरण... सीपी राधाकृष्णन पर बीजेपी ने क्यों खेला दांव? 5 पॉइंट्स में समझें
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जगदीप धनखड़ के इस्तीफा देने के बाद उपराष्ट्रपति पद के लिए हो रहे चुनाव में बीजेपी ने सीपी राधाकृष्णन को एनडीए का उम्मीदवार बनाया है, जिसके जरिए कई सियासी समीकरण साधने का दांव चला है. ऐसे में देखना है कि विपक्ष किसे उपराष्ट्रपति के चुनाव में प्रत्याशी बनाने का फैसला करता है?
देश के उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए बीजेपी ने आखिरकार अपने पत्ते खोल दिए हैं. महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को बीजेपी ने उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए का उम्मीदवार घोषित कर दिया है. रविवार को बीजेपी संसदीय बोर्ड की हुई बैठक में सीपी राधाकृष्णन के नाम पर मुहर लगी, जिसका ऐलान पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने किया.
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि हम सीपी राधाकृष्णन के नाम पर सभी का समर्थन जुटाना चाहते हैं. इसके लिए सभी विपक्षी दलों के साथ बातचीत करेंगे ताकि उपराष्ट्रपति पद के लिए निर्विरोध चुनाव हो सके. वहीं, सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाना बीजेपी का बेहद सोचा-समझा कदम माना जा रहा है.
राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर बीजेपी ने सियासी संदेश देने का दांव चला है. बीजेपी ने सीपी राधाकृष्णन के ज़रिए पार्टी कार्यकर्ताओं को मैसेज देने के साथ दक्षिण भारत में अपनी सियासी पकड़ मज़बूत बनाए रखने का दांव चला है. पांच पॉइंट्स में समझें कि बीजेपी ने राधाकृष्णन के ज़रिए क्या-क्या समीकरण साधने की कवायद की है.
दक्षिण भारत को सियासी संदेश
उपराष्ट्रपति के एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन दक्षिण भारत के तमिलनाडु से आते हैं. इस तरह से बीजेपी ने उनके नाम पर मुहर लगाकर दक्षिण भारत को साधने का बड़ा दांव चला है. उत्तर भारत की सियासत पर बीजेपी की पकड़ मज़बूत बनी हुई है, लेकिन दक्षिण भारत की सियासी ज़मीन अभी भी पार्टी के लिए बंजर बनी हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा दोनों ही उत्तर भारत से हैं. ऐसे में बीजेपी ने दक्षिण के साथ सियासी संतुलन बनाए रखने के लिए सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाने की रणनीति अपनाई है.
साउथ के किसी भी राज्य में बीजेपी की अपनी सरकार नहीं है. आंध्र प्रदेश और पुडुचेरी सरकार में बीजेपी शामिल है. तमिलनाडु और केरल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. राधाकृष्णन तमिलनाडु से आते हैं और उन्होंने राज्य में बीजेपी को मज़बूत करने में काफ़ी मशक्कत की है. वे प्रदेश अध्यक्ष से लेकर दो बार लोकसभा सदस्य भी रहे हैं. इस तरह बीजेपी ने उपराष्ट्रपति के लिए तमिल मूल के नेता पर भरोसा जताकर एआईएडीएमके और डीएमके जैसे दलों को सियासी कशमकश में डाल दिया है.

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