यूरोपीय यूनियन की सख्ती पर भारत ने जताई चिंता, उठाएगा ये कदम!
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यूरोपीय यूनियन और भारत के बीच ट्रेड को लेकर जारी विवाद थम नहीं रहा है. ईयू ने पिछले महीने ही एक प्रस्ताव की मंजूरी दी है, जिसके तहत अगर भारत यूरोपीय समूह में शामिल देशों को स्टील या सीमेंट जैसे उच्च कार्बन वाले सामान का निर्यात करता है, तो उसे टैक्स देना होगा. केंद्र की मोदी सरकार ने इस पर चिंता जाहिर की है.
पर्यावरण संरक्षण के नाम पर यूरोपीय यूनियन की ओर से कार्बन टैक्स लगाए जाने की घोषणा पर भारत ने चिंता जाहिर की है. इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र की मोदी सरकार यूरोपीय यूनियन के एकतरफा फैसले के खिलाफ खिलाफ विश्व व्यापार संगठन (WTO) में शिकायत दर्ज कराने की योजना बना रही है.
पिछले महीने ही यूरोपीय यूनियन ने कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म की (CBAM) पहल के तहत जनवरी 2026 से ज्यादा कार्बन उत्सर्जित करने वाले सामानों के आयात पर टैक्स लगाने की योजना को मंजूरी दी है. ईयू का यह मैकेनिज्म दुनिया में अपनी तरह का पहला कार्बन टैक्स मैकेनिज्म है. CBAM के तहत अगर कोई भी देश ईयू के 27 सदस्य देशों में से किसी भी देश को ज्यादा कार्बन उत्सर्जन वाले सामान का निर्यात करता है, तो उससे कार्बन टैक्स वसूला जाएगा. यह टैक्स 20 से 25 प्रतिशत है.
ईयू के इस फैसले का भारत पर कितना असर?
ईयू का यह प्रस्ताव भारत के लिए इसलिए चिंताजनक है क्योंकि उच्च कार्बन वाली वस्तुओं में स्टील, सीमेंट, एल्यूमीनियम, उर्वरक, बिजली और हाइड्रोजन से संबंधित प्रोडक्ट शामिल हैं. जबकि भारत इन्हीं उत्पादों का सबसे ज्यादा निर्यात करता है. इस मैकेनिज्म के तहत ग्रीनहाउस गैसों के जीरो उत्सर्जन लक्ष्य को 2050 तक पूरा करना है. जो भारत के लक्षित वर्ष 2070 से पहले है.
मामले से जुड़े एक उच्च अधिकारी का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण के नाम पर यूरोपीय यूनियन CBAM के माध्यम से हमारे व्यापार में बाधा डाल रहा है, जो न केवल भारतीय निर्यात को बल्कि कई अन्य विकासशील देशों को भी प्रभावित करेगा. अधिकारी ने यह भी कहा कि सरकार ईयू के इस फैसले के खिलाफ डब्ल्यूटीओ में शिकायत दर्ज कराने की योजना बना रही है. इस शिकायत में सरकार भारतीय निर्यातकों, खासकर छोटी कंपनियों के लिए राहत की मांग करेगी.
वहीं, एक अन्य अधिकारी ने कहा कि ईयू के इस कार्बन टैक्स मैकेनिज्म को भारत भेदभावपूर्ण और व्यापार में रुकावट के तौर पर देखता है. WTO में भारत इस मैकेनिज्म की वैधता पर भी सवाल उठाएगा क्योंकि भारत पहले से ही संयुक्त राष्ट्र जलवायु समझौते में दिए गए प्रोटोकॉल का पालन कर रहा है.