'मैनेजर पांडेय के जाने से अनाथ हो गई हिंदी आलोचना', साहित्यकारों ने आलोचक को ऐसे किया याद
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हिंदी आलोचना के सशक्त हस्ताक्षर मैनेजर पांडेय का दिल्ली में 6 नवंबर को निधन हो गया था. मैनेजर पांडेय के निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई. देशभर के साहित्यकारों ने डॉक्टर मैनेजर पांडेय के निधन पर शोक व्यक्त किया. साहित्यकारों ने ये भी कहा कि मैनेजर पांडेय के जाने के बाद हिंदी आलोचना अनाथ हो गई है.
बिहार के गोपालगंज जिले के लोहटी में जन्मे हिंदी आलोचना के सशक्त हस्ताक्षर मैनेजर पांडेय का दिल्ली में 6 नवंबर को निधन हो गया था. मैनेजर पांडेय के निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई. देशभर के साहित्यकारों ने डॉक्टर मैनेजर पांडेय के निधन पर शोक व्यक्त किया. डॉक्टर मैनेजर पांडेय की याद में नई दिल्ली स्थित साहित्य अकादमी में भी स्मृति आयोजित की गई जिसमें नामचीन साहित्यकारों ने श्रद्धांजलि अर्पित की.
साहित्य अकादमी में आयोजित स्मृति सभा में साहित्यकारों ने डॉक्टर मैनेजर पांडेय को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उन्होंने विचारों में जो जीवन जिया, वास्तविक जीवन में भी उसे ही जिया. जो व्यक्ति नैतिकता को चुनता है वो ऋषि बन जाता है. उनके निधन से हिंदी को जो क्षति हुई है उसकी भरपाई करना मुश्किल है.
साहित्यकारों ने ये भी कहा कि मैनेजर पांडेय के जाने के बाद हिंदी आलोचना अनाथ हो गई है. शिखर बनने की और पुरस्कार पाने की चाह उन्होंने कभी नहीं पाली. वे हिंदी के एक विलक्षण व्यक्ति थे. इस स्मृति सभा में प्रमुख साहित्यकारों के साथ ही छात्र, प्रकाशक और मैनेजर पांडेय के परिजन भी मौजूद थे. राजकमल प्रकाशन की ओर से आयोजित इस स्मृति सभा का आयोजन साहित्य अकादमी के रविंद्र भवन में हुआ.
कहां क्या लिखा जा रहा, रखते थे नजर
साहित्यकार अनामिका ने मैनेजर पांडेय को याद करते हुए कहा कि वे चारों तरफ देखते थे. बाकी भाषाओं में क्या लिखा जा रहा है, क्या सोचा जा रहा है, उनकी नजर सब पर रहती थी. वरिष्ठ साहित्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा कि उनका जीवन काफी उथल-पुथल वाला रहा. आखिर ऐसा क्यों है कि उनका जाना आकस्मिक लगता है ? उन्होंने कहा कि हम सभी जानते हैं कि मैनेजर पांडेय जब तक रहते, लिखते रहते. वे एक निर्भीक व्यक्ति थे और उनके व्यक्तित्व का एक अंग ऐसा भी था जो बहुत कोमल था.
आलोचक पुरूषोतम अग्रवाल ने मैनेजर पांडेय से जुड़ी यादें साझा कीं वहीं मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि लेखन में उम्मीदें उन्होंने ही जगाईं. वे टूटने नहीं देते थे. मैनेजर पांडेय की छात्रा रहीं सुदीप्ति ने कहा कि जीवन में उनकी कमी हमेशा खेलेगी. रेखा पांडेय ने उन्हें याद करते हुए कहा कि जो व्यक्ति नैतिकता को चुनता है वह ऋषि बन जाता है. मैनेजर पांडेय को किसी चीज का मोह नहीं था. उन्हें सिर्फ किताबों से मोह था.
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