'ब्रिटेन ने भी खोले थे बॉर्डर, लेकिन आज शरणार्थियों की समस्या बेकाबू हो चुकी है...' CAA पर बोले हरीश साल्वे
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नागरिकता संशोधन कानून पर कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि ये कानून 'भेदभावपूर्ण है, धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है.' इनके अलावा सिर्फ तीन देशों के ही लोगों को क्यों नागरिकता दी जा रही है? इन तमाम सवालों पर इंडिया टुडे ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे से बात की. उन्होंने कानून के पक्ष में कई अहम बातें बताईं.
नागरिकता संशोधन कानून के देशभर में लागू किए जाने के बाद इसपर फिर से बहस शुरू हो गई है. तीन मुस्लिम बहुल देशों से 'प्रताड़ित' गैर-मुस्लिम आबादी को भारत की नागरिकता देने का मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है. कानून को 'भेदभावपूर्ण' बताया जा रहा है लेकिन वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कानून के पक्ष में कई अहम बातें बताई है.
नागरिकता कानून के विरोध पर हरीश साल्वे कहते हैं, इसका मतलब नहीं बनता कि आपको 'प्रताड़ित' लोगों के एक वर्ग को नागरिकता देने के लिए पूरी दुनिया के लोगों को शामिल कर लें. (जिन्हें नागरिकता दी जा रही है) वे भारतीय एथ्निसिटी के हैं. धार्मिक आधार पर उनके साथ भेदभाव होता है.
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'ब्रिटेन खो रहा अपना रुतबा'
सीएए से समानता का अधिकार और अनुच्छेद 14 के उल्लंघन के दावों पर हरीश साल्वे ने बताया कि अनुच्छेद 14 के तहत तमाम भारतीयों को भारत में अधिकार मिलता है. नागरिकता कानून एक नीतिगत चॉइस है. उन्होंने ब्रिटेन की स्थिति का हवाला देकर बताया कि कैसे ब्रिटेन ने शरणार्थियों के लिए दरवाजे खोले और आज उससे परेशान है. ब्रिटेन का इमिग्रेशन सिस्टम ध्वस्त हो रहा है.
हरीश साल्वे ने कहा, "ब्रिटेन आज अपना रुतबा खो रहा है. मैं लंदन में रहता हूं लेकिन यकीन मानिए शहर जर्जर हालत में है... लंदन का बुनियादी ढांचा जर्जर हालत में है. जब मैं दिल्ली उतरता हूं तो मुझे लगता है कि मैं एक विकासशील देश से एक विकसित देश में आ गया हूं. यही अंतर है. लंदन में 200 यात्रियों के लिए इमीग्रेशन पर 2 लोग हैं... दिल्ली हवाई अड्डे पर 14 हैं. लंदन के पास इन सबके लिए पैसे ही नहीं हैं."
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