
बिहार विधानसभा चुनाव: सीमांचल में ‘घुसपैठिया’ मुद्दा, कितना सही, कितना राजनीतिक?
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बिहार में कल सुबह मंगलवार को अंतिम चरण की वोटिंग है. एनडीए और महागठबंधन दोनों ही ने सीमांचल में जोर लगा रखा है. एनडीए ने यहां पर अवैध घुसपैठियो का मुद्दा बहुत जोरों से उठा रखा है.
सीमांचल बिहार का वह इलाका जो पश्चिम बंगाल, और नेपाल की सीमाओं से सटा हुआ है, जबकि बांग्लादेश के बेहद नजदीक है. यह इलाका लंबे समय से घुसपैठ का केंद्र रहा है. किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार जैसे जिलों में मुस्लिम आबादी 47% से अधिक है, जो इसे चुनावी रूप से संवेदनशील बनाता है. कल सुबह यानि कि मंगलवार को यहां बिहार विधानसभा चुनावों के वोट पड़ने वाले हैं.
यहां बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों का मुद्दा दशकों पुराना है, लेकिन 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों के बीच यह फिर से गरमाया है. भाजपा (BJP) इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और डेमोग्राफी चेंज का खतरा बताती है, जबकि विपक्ष (आरजेडी-कांग्रेस) इसे हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का हथियार कहता है. जाहिर है कि एनडीए और महागठबंधन के लिए यह बहुत बड़ा मुद्दा है. विपक्ष का कहना है कि बीजेपी बेवजह इस मुद्दे को तूल देती है और करती कुछ नहीं है. हालांकि विपक्ष का यह आरोप बहुत हद तक सही है. पर पूरी तरह सही नहीं कहा जा सकता है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि घुसपैठियों को बाहर करने में सफलता नहीं मिली है. पर यह भी सही है कि चाहे सीमित मात्र में ही सही लगातार सरकार ऐसे उपाय कर रही है. आइये देखते हैं कि वास्तव में घुसपैठियों का मुद्दा कितना वास्तविक है?
यह मुद्दा वास्तविक है, या केवल चुनावी ड्रामा?
सवाल उठता है कि BJP ने घुसपैठ रोकने या बाहर भेजने के लिए अब तक क्या कुछ किया, या सिर्फ बातें ही बना रही है? आंकड़े, उदाहरण और तथ्यों से पता चलता है कि दोनों ही बातें सही हो सकती हैं. दरअसल आंकड़े कहते हैं कुछ हद तक सही, लेकिन अतिरंजितसीमांचल में घुसपैठ का मुद्दा कोई नया नहीं. 1971 के बांग्लादेश युद्ध के बाद बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रवासी असम से होते हुए यहां पहुंचे.
2019 में गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में करीब 10 लाख अवैध प्रवासी हैं, जिनमें से अधिकांश सीमांचल में बसे हैं. जनगणना डेटा से साफ है कि 1951-2011 के बीच देशव्यापी मुस्लिम आबादी 4% बढ़ी, लेकिन सीमांचल में यह 16% तक पहुंची. उदाहरण: किशनगंज में हिंदू अल्पसंख्यक (30.44% वृद्धि दर 2001-2011), पूर्णिया (28.66%), अररिया (30%) और कटिहार (30%). जाहिर है कि इस तरह डेमोग्राफी चेंज होती है. नौकरियां, जमीन और संसाधनों पर दबाव डालता है. परिणाण स्वरूप गरीब हिंदुओं का पलायन होता है.
2025 में चुनाव से पहले वोटर लिस्ट रिवीजन (SIR) ने हलचल मचाई. किशनगंज और मुजफ्फरपुर में 1-2 लाख निवास प्रमाण पत्र आवेदन आए, जिन्हें उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने रोहिंग्या घुसपैठ से जोड़ा. दूसरी तरफ SIR के परिणाम चौंकाने वाले रहे. 2.42 लाख आपत्तियों में केवल 1,087 (0.015%) विदेशी समझे गए. इनमें से 390 वैलिड, और सीमांचल में सिर्फ 12 विदेशी, 6 हिंदू, 6 मुस्लिम (2 मुस्लिम मृत). यानी बचे 4 मुस्लिम, जिनकी स्थिति अस्पष्ट है.

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