
बांग्लादेश में साजिश, भारत में ऑपरेशन और काला कारोबार... जानें किडनी रैकेट के पकड़े जाने की पूरी कहानी
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इसी साल 16 जून को दिल्ली पुलिस के अधिकारियों को खुफिया विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिलती है कि एक गैंग के लोग अवैध किडनी ट्रांसप्लांट के काले धंधे में शामिल हैं. ये ख़बर मिलते ही पुलिस हरकत में आ गई. अब बारी थी सूचना की पुष्टि करने की. इस काम को अंजाम देने के बाद जांच को आगे बढ़ाया गया.
देश की राजधानी दिल्ली में एक बार फिर एक बड़े और अंतर्राष्ट्रीय किडनी रैकेट का भंड़ाफोड़ हुआ है. क्राइम ब्रांच ने बांग्लादेश से लेकर राजस्थान तक चलने वाले इस किडनी रैकेट का खुलासा करने के साथ ही 50 साल की एक विख्यात महिला डॉक्टर समेत 7 लोगों को गिरफ्तार किया है. पकड़ी गई महिला डॉक्टर एक बड़े अस्पताल में काम करती है. इल्जाम है कि ये महिला डॉक्टर किडनी ट्रांसप्लांट के 15 से 16 ऑपरेशन कर चुकी है. चलिए हम आपको बताते हैं कि इस पूरे रैकेट की इनसाइड स्टोरी.
16 जून को पुलिस ने लिया था पहला एक्शन इसी साल 16 जून को दिल्ली पुलिस के अधिकारियों को खुफिया विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिलती है कि एक गैंग के लोग अवैध किडनी ट्रांसप्लांट के काले धंधे में शामिल हैं. ये ख़बर मिलते ही पुलिस हरकत में आ गई. अब बारी थी सूचना की पुष्टि करने की. इस काम को अंजाम देने के बाद मामले को आगे बढ़ाया गया और 16 जून उसी सूचना के आधार पर एसीपी (आईएससी/क्राइम ब्रांच) के नेतृत्व में इंस्पेक्टर कमल कुमार, सतेंद्र मोहन और रमेश लांबा एसआई गुलाब सिंह, आशीष शर्मा, समय सिंह, एएसआई शैलेंद्र सिंह, राकेश कुमार, जफरुद्दीन, एचसी रामकेश, वरुण, शक्ति सिंह और कांस्टेबल नवीन कुमार को लेकर एक टीम गठित की गई. जिसने उसी रोज जसोला गांव में छापेमारी की.
पूछताछ में अहम खुलासा टीम को बड़ी कामयाबी हाथ लगी. पुलिस ने मौके से 4 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. जिनकी शिनाख्त रसेल, रोकोन, सुमन मियां के तौर पर की गई. ये तीनों बांग्लादेश के मूल निवासी हैं. जबकि एक आरोपी की पहचान रतेश पाल के तौर पर हुई, जो त्रिपुरा, भारत का रहने वाला है. इन चारों को पकड़कर पुलिस टीम ने पूछताछ का सिलसिला शुरू किया. और फिर उनकी निशानदेही पर तीन किडनी चाहने वालों और तीन डोनर्स की पहचान कर ली गई. मामला पुख्ता हो चुका था. लिहाजा, पुलिस ने चारों आरोपियों के खिलाफ कानून की संबंधित धाराओं में मामला दर्ज कर लिया.
किडनी रैकेट की मॉडस ऑपरेंडी चारों आरोपियों से पूछताछ का सिलसिला थमा नहीं था. पुलिस जानती थी कि अभी उन चारों के सीने कई राज दफ्न है. जब आरोपियों से सख्ती के साथ पूछताछ की गई तो उन्होंने कबूल किया कि वे बांग्लादेश में डायलिसिस केंद्रों पर जाकर किडनी रोग से पीड़ित रोगियों को निशाना बनाते थे. इसके बाद वे बांग्लादेश से ही डोनर की व्यवस्था करते थे. वे ऐसे लोगों को तलाश करते थे, जिनकी आर्थिक स्थिति खराब होती थी. वे इसी बात का फायदा उठाते थे और उन्हें भारत में नौकरी दिलाने के बहाने लेकर आते थे.
करीबी रिश्तेदारी के फर्जी दस्तावेज फिर शुरू होता था उनके शोषण का सिलसिला. भारत पहुंचने के बाद नौकरी के नाम पर लाए गरीब बांग्लादेशियों के पासपोर्ट जब्त कर लिए जाते थे. इसके बाद आरोपी रसेल और इफ्ति ने अपने सहयोगियों सुमन मियां, रोकन उर्फ राहुल सरकार और रतेश पाल के ज़रिए से रोगियों और डोनर के बीच संबंध दिखाने के लिए उनके जाली दस्तावेज तैयार करवाते थे, क्योंकि यह अनिवार्य है कि केवल करीबी रिश्तेदार ही डोनर हो सकते हैं.
ऐसे होता था ऑपरेशन अब मामला आगे बढ़ जाता था. उन जाली दस्तावेजों के आधार पर यहां के अस्पतालों से उनकी प्रारंभिक चिकित्सा जांच करवाई जाती थी और इसके बाद सारी औपचारिकताएं पूरी होने पर उनका किडनी ट्रांसप्लांट ऑपरेशन करवाया जाता था.

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