
बंगाल की सियासत के नॉर्थ-साउथ पोल... ममता बनर्जी के 'पावर जोन' में बीजेपी के इन 5 नेताओं की सेंध
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पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. सूबे की सियासत नॉर्थ और साउथ पोल में बंटी हुई है. एक बीजेपी का गढ़ बनकर उभरा है तो दूसरा ममता का किला है. ममता बनर्जी के पावर जोन में बीजेपी भी अलग रणनीति के साथ चुनौती दे रही है.
दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी का विजय रथ रोकने के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का फोकस पश्चिम बंगाल पर है. 2021 के बंगाल चुनाव में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी बीजेपी इस बार अधिक आक्रामक रणनीति के साथ उतरने के संकेत दे चुकी है. गृह मंत्री अमित शाह के हर महीने दो दिन बंगाल दौरे का कार्यक्रम भी तैयार है. ऐसे में वक्फ कानून के खिलाफ मुर्शिदाबाद में भड़की हिंसा ने पश्चिम बंगाल की सियासी फिजां में और गर्माहट ला दी है. शिक्षक भर्ती घोटाला और बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे पर आक्रामक बीजेपी को मुर्शिदाबाद हिंसा ने ममता बनर्जी की सरकार को तुष्टिकरण को लेकर कठघरे में खड़ा करने का मौका दे दिया है.
मुर्शिदाबाद, उत्तर बंगाल के मालदा से सटा है. मालदा उत्तर बंगाल में आता है. बंगाल में बीजेपी का एंट्री पॉइंट रहे उत्तर बंगाल में पिछले कुछ चुनावों से कमल निशान वाली पार्टी मजबूती से उभरी है. ऐसे में बात बंगाल की रीजनल पॉलिटिक्स को लेकर भी होने लगी है. पश्चिम बंगाल की सियासत देखें तो यह नॉर्थ और साउथ पोल में बंटी नजर आती है. दोनों ही इलाकों का अपना मिजाज है. उत्तर बंगाल में बीजेपी का मजबूत उभार हुआ है तो वहीं दक्षिण बंगाल ममता बनर्जी का दुर्ग है. उत्तर बंगाल में मालदा के साथ ही कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार, दार्जिलिंग, कालिम्पोंग, उत्तर दिनाजपुर और दक्षिण दिनाजपुर जिले आते हैं. इन जिलों में कुल 54 विधानसभा सीटें हैं.
दक्षिण बंगाल की बात करें तो ममता बनर्जी की पार्टी का पावर हाउस माने जाने वाले इस इलाके में राजधानी कोलकाता के साथ ही उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना जैसे जिले आते हैं. टीएमसी का वोट शेयर इस रीजन में लगातार 49 फीसदी के आसपास रहा है. साल 2019 के चुनाव में जब बीजेपी ने 18 लोकसभा सीटें जीती थीं, तब भी ममता बनर्जी की पार्टी अपना दक्षिणी दुर्ग बचाने में सफल रही थी. 2021 के विधानसभा चुनाव में उत्तर बंगाल में बीजेपी के मजबूत प्रदर्शन और नंदीग्राम की सीट पर चुनाव हारने के बावजूद ममता बनर्जी की पार्टी बहुमत के साथ सत्ता में लौटी तो इसके पीछे भी दक्षिण बंगाल की भूमिका निर्णायक रही थी.
पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती लोकल लीडरशिप की रही है. 2021 के बंगाल चुनाव में बीजेपी आक्रामक प्रचार के बावजूद टीएमसी से करीब 10 फीसदी वोट के अंतर से पीछे रह गई तो उसके पीछे सबसे बड़ी वजह यही बताया गया कि पार्टी लोकल लीडरशिप और बंगाली अस्मिता की पिच पर ममता के मुकाबले बहुत पीछे रह गई. इस बार पार्टी पहले से ही अलर्ट मोड में है. बंगाली भद्रलोक को अपने पाले में लाने के साथ ही पार्टी ने लोकल लीडरशिप पर अधिक फोकस किया.
शुभेंदु अधिकारी को विपक्ष का नेता बनाकर बीजेपी ने ममता बनर्जी के मुकाबले बंगाली अस्मिता की पिच पर एक चेहरा खड़ा किया तो प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार को केंद्रीय मंत्री बनाकर उत्तर बंगाल का किला मजबूत करने का प्रयास. बीजेपी के ये पांच नेता ममता बनर्जी के पावर हाउस में चुनौती देते नजर आ रहे हैं.
शुभेंदु अधिकारी

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