
पौराणिक युग से आधुनिक पॉलिटिक्स के केमिकल काल तक... यमुना की बेबसी की हिस्ट्री और केमिस्ट्री!
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दिल्ली में चुनाव है और चुनाव की इस गहमा-गहमी के बीच यमुना भी बड़ा चुनावी मुद्दा बनकर उभरी है. दावा किया जा रहा है कि यमुना में जहर है. आरोप लग रहे हैं कि यमुना का जल पीने तो क्या आचमन के लायक भी नहीं है. दिल्ली की बड़ी रिहायश आज भी पानी की कमी से जूझ रही है. यमुना, जो दिल्ली में नालों का संगम बन गई है, जिसमें केमिकल के झाग जब-तब बहते नजर आते हैं.
एक राजा था. नाम था ढिल्लू... इतिहास वाले बताते हैं कि शायद नाम था दिल्लू, या ढिल्लों... नाम जो भी रहा हो, लेकिन 8वीं सदी के इस राजा के नाम पर अरावली की पहाड़ियों की गोद में बसे एक लंबे-चौड़े और दूर तक फैले ऊबड़-खाबड़ वाले खाली जगह को ढिल्ली कहा जाने लगा. फिर तो तोमर आए, चौहान आए, तुगलक, खिलजी, लोदी, मुगल और आखिरी में आए अंग्रेज, तब तक ये ढिल्ली, ढिल्लिका, ढेलिका, ढेली से होते-होते दिल्ली में बदल गई.
दिल्ली में क्या है यमुना का वजूद? कहते हैं कि दिल्ली सात बार बसी, सात बार उजड़ी और उजड़ कर फिर बसी. इसका इतिहास लिखा गया, भूगोल बदलता गया, निजाम और इंतजाम सब बदलते गए लेकिन किसी को नहीं ध्यान रही तो बस यमुना. वो यमुना जो गंगा की ही तरह पहाड़ के दूसरे छोर से निकल कर आई, पुराणों में उसकी ही तरह पूजी गई है. उसकी ही तरह शहरों को बसाया, कला और कल्चर को पनाह दी, प्यासे की प्यास बुझाई और बंजर जमीनों को हरा किया... लेकिन अपने किनारे बसे दुनिया के बड़े और जाने-माने शहर दिल्ली के बावजूद आज यमुना का वजूद क्या है?
यमुना में केमिकल और जहर की सियासत! दिल्ली में चुनाव है और चुनाव की इस गहमा-गहमी के बीच यमुना भी एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनकर उभरी है. दावा किया जा रहा है कि यमुना में जहर है. आरोप लग रहे हैं कि यमुना का जल पीने तो क्या आचमन के लायक भी नहीं है. दिल्ली की एक बड़ी रिहायश आज भी पानी की कमी से जूझ रही है. यमुना, जो दिल्ली में नालों का संगम बन गई है, जिसमें केमिकल के झाग जब-तब बहते नजर आते हैं.
ये यमुना हमेशा से ऐसी नहीं थी. इस यमुना ने भी अपनी शीतल-निर्मल लहरे देखीं हैं और खुद को सत्ता के उस केंद्र में देखा है, जहां नदियां सभ्यता को जिलाए रखने वाली अमृत की तरह माने गए हैं. यमुना और दिल्ली ने ऐसे सुनहरे और खूबसूरत इतिहास वाले लंबे दौर भी देखे हैं. इसकी तस्दीक इतिहास और इतिहास को बताने वाले खुले दिल से करते हैं.
यमुना का सांस्कृतिक विस्तार हमेशा अनदेखा रहा इतिहासकार और लेखक पुष्पेश पंत जब यमुना के बारे में बात करते हैं तो कहते हैं, हमें यमुना सिर्फ दिल्ली और आगरा में याद आती है या फिर यह नदी सिर्फ मथुरा-वृंदावन के पास याद आती है. हम बाकी यमुनाजी को भूल जाते हैं. हम भूल जाते हैं कि यमुनाजी का असली विस्तार बहुत बड़ा है. यह यमुनोत्री से शुरू होता है टौंस नदी के किनारे-किनारे फैली टौंस घाटी की संस्कृति को समृद्ध करते हुए उनका बहाव आगे बढ़ता है.

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