
'पीएम मोदी से पहली बार 1981 में मिली, तब वह MA कर रहे थे', डिग्री विवाद पर बोलीं शीला भट्ट
AajTak
वरिष्ठ पत्रकार शीला भट्ट ने पीएम मोदी के डिग्री विवाद पर एएनआई को बताया कि वह 1981 में एमए पार्ट-2 कर रहे थे. पीएम की डिग्री पर सवाल उठाने पर अभी दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और सांसद संजय सिंह मानहानि के केस का सामना कर रहे हैं. गुरुवार को इस मामले में अहमदाबाद की मेट्रो कोर्ट में दोनों की पेशी भी थी.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और AAP सांसद संजय सिंह अभी पीएम नरेंद्र मोदी की डिग्री को लेकर मानहानि के केस का सामना कर रहे हैं. केजरीवाल ने पीएम मोदी की एमए की डिग्री पर सवाल उठाया है. इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार शीला भट्ट ने न्यूज एजेंसी एएनआई की एडिटर स्मिता प्रकाश को दिए इंटरव्यू में इस मामले में कहा- 'मैं पीएम नरेंद्र मोदी से पहली बार 1981 में मिली थी, तब वह एमए पार्ट टू में थे. उनके मेंटर थे प्रफेसर प्रवीण सेठ, वही मेरे भी मेंटर थे. तब प्रफेसर सेठ और उनकी पत्नी सुरभि के घर मोदी रोज आते थे. तब नरेंद्र मोदी अकसर उनके पास आते थे और मैं भी वहां आ जाती थी. तब मोदी बहुत पढ़ाई-लिखाई करते थे. मुझे बहुत कुछ याद है लेकिन ये समय नहीं है उन सारी बातों को कहने का.'
पत्रकार शीला भट्ट ने कहा,'मैं पीएम नरेंद्र मोदी की एक क्लासमेट को भी जानती हूं. वह वकील हैं. मैंने कुछ दिन पहले उनसे बातचीत की थी, जब अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के नेता मोदी की पढ़ाई-लिखाई पर सवाल उठा रहे थे. मैंने उनको कहा था कि आप उनकी क्लासमेट हैं तो आप इस पर कुछ बोलिए लेकिन वह बोलने के लिए तैयार नहीं हुईं.'
वरिष्ठ पत्रकार ने इंटरव्यू में यह भी बताया कि नरेंद्र मोदी के पास 2001 तक कोई घर भी नहीं था. पीएम जन्म से ही संघर्षों का सामना करने वालों में से हैं. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह को आपको थोड़ा अलग हटकर देखना होगा. इंडिया के जितने भी मुद्दे हैं, ये उनकी ग्रिप में थे, लेकिन इंतजार किया और अब हल कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि आपको ऐसा कौन सा पीएम मिलेगा, जो 1981 से 2001 तक हर साल दिवाली पर देश के किसी ना किसी जिले में अकेले ही घूमने जाते थे. तब वह किसी से संपर्क में नहीं होते थे और देश को समझने के लिए 5 दिन के लिए निकलते थे.
शीला भट्ट ने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम से अपने इंटरव्यू की कहानी भी बताई. उन्होंने बताया कि दाऊद इब्राहिम का साल 1981-82 में उनके पास फोन आया था, तब वह आतंकी नहीं सिर्फ अपराधी था. मुझे दाऊद ने मिलने के लिए जेल रोड के पास बुलाया. मैं अपने पति के साथ वहां गई. हम जब पहुंचे तो इब्राहिम और छोटा शकील वहां बैठा हुए थे. हम यहां दाऊद को जानने गए थे. उसे बस इतना कहना था कि करीम लाला बुरा आदमी है."

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति को रूसी भाषा में भगवद गीता का एक विशेष संस्करण भेंट किया है. इससे पहले, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति को भी गीता का संस्करण दिया जा चुका है. यह भेंट भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को साझा करने का प्रतीक है, जो विश्व के नेताओं के बीच मित्रता और सम्मान को दर्शाता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को कई अनोखे और खास तोहफे भेंट किए हैं. इनमें असम की प्रसिद्ध ब्लैक टी, सुंदर सिल्वर का टी सेट, सिल्वर होर्स, मार्बल से बना चेस सेट, कश्मीरी केसर और श्रीमद्भगवदगीता की रूसी भाषा में एक प्रति शामिल है. इन विशेष तोहफों के जरिए भारत और रूस के बीच गहरे संबंधों को दर्शाया गया है.

चीनी सरकारी मीडिया ने शुक्रवार को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के उन बयानों को प्रमुखता दी, जिनमें उन्होंने भारत और चीन को रूस का सबसे करीबी दोस्त बताया है. पुतिन ने कहा कि रूस को दोनों देशों के आपसी रिश्तों में दखल देने का कोई अधिकार नहीं. चीन ने पुतिन की भारत यात्रा पर अब तक आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन वह नतीजों पर नजर रखे हुए है.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सम्मान में राष्ट्रपति भवन में शुक्रवार रात डिनर का आयोजन किया गया. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस डिनर में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को निमंत्रण नहीं दिया गया. इसके बावजूद कांग्रेस के सांसद शशि थरूर को बुलाया गया.

आज रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ शिखर वार्ता के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत–रूस मित्रता एक ध्रुव तारे की तरह बनी रही है. यानी दोनों देशों का संबंध एक ऐसा अटल सत्य है, जिसकी स्थिति नहीं बदलती. सवाल ये है कि क्या पुतिन का ये भारत दौरा भारत-रूस संबंधों में मील का पत्थर साबित होने जा रहा है? क्या कच्चे तेल जैसे मसलों पर किसी दबाव में नहीं आने का दो टूक संकेत आज मिल गया? देखें हल्ला बोल.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मंदिर में जमा पैसा देवता की संपत्ति है और इसे आर्थिक संकट से जूझ रहे सहकारी बैंकों को बचाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें थिरुनेल्ली मंदिर देवस्वोम की फिक्स्ड डिपॉजिट राशि वापस करने के निर्देश दिए गए थे. कोर्ट ने बैंकों की याचिकाएं खारिज कर दीं.







