
'पावर के मायने अब बदल गए हैं...', जयशंकर ने वैश्विक उथल-पुथल पर दिया बड़ा बयान
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जयशंकर ने पुणे में सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के 22वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया की आर्थिक और राजनीतिक ताकत का क्रम अब पूरी तरह बदल चुका है. आज वैश्विक स्तर पर एक नहीं, बल्कि कई ऐसे केंद्र उभर चुके हैं, जहां से शक्ति और प्रभाव काम कर रहा है. ऐसे में कोई भी देश, चाहे वह कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, हर मुद्दे पर अपनी इच्छा नहीं थोप सकता.
विदेश मंत्री एस जयशंकर का कहना है कि इस समय दुनिया बड़े वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक बदलावों के दौर से गुजर रही है. ऐसे में अब ताकत के कई केंद्र उभर रहे हैं. कोई भी देश कितना भी ताकतवर क्यों ना हो, वह अब किसी भी मुद्दे पर अपनी इच्छाओं को दूसरे देशों पर थोप नहीं सकता.
जयशंकर ने पुणे में सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के 22वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया की आर्थिक और राजनीतिक ताकत का क्रम अब पूरी तरह बदल चुका है. आज वैश्विक स्तर पर एक नहीं, बल्कि कई ऐसे केंद्र उभर चुके हैं, जहां से शक्ति और प्रभाव काम कर रहा है. ऐसे में कोई भी देश, चाहे वह कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, हर मुद्दे पर अपनी इच्छा नहीं थोप सकता.
उन्होंने कहा कि अमेरिका से संवाद और जुड़ाव अब पहले की तुलना में कहीं अधिक जटिल हो गया है. आप सभी जानते हैं कि इसके कारण क्या हैं. चीन से निपटना भी अब कहीं ज्यादा पेचीदा हो चुका है. यूक्रेन युद्ध के चलते रूस को भरोसे में लेना भी मुश्किल हो गया है, क्योंकि हम पर रूस से दूरी बनाने का दबाव बनाया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में देशों के बीच स्वाभाविक प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही है और यही प्रतिस्पर्धा अपने आप एक नया संतुलन भी बना रही है. अब दुनिया एक ध्रुव वाली नहीं रही, बल्कि कई ध्रुवों वाली बन चुकी है, जहां अलग-अलग देश और क्षेत्र अपनी भूमिका निभा रहे हैं. इसी तरह पावर की परिभाषा भी पहले जैसी नहीं रही. आज ताकत केवल सेना या हथियारों तक सीमित नहीं है. इसमें व्यापार, ऊर्जा, सैन्य क्षमता, प्राकृतिक संसाधन, तकनीक और मानव प्रतिभा जैसे कई पहलू शामिल हैं. यही वजह है कि वैश्विक शक्ति को समझना आज पहले से कहीं ज्यादा जटिल हो गया है.
जयशंकर ने कहा कि यूरोप हमारे लिए एक बेहद अहम साझेदार है, जिसके साथ हमें और अधिक प्रयास करने की जरूरत है और जब हम अपने पड़ोस की बात करते हैं, तो हमारे पड़ोसी देश हमसे आकार में छोटे हैं और हर एक किसी न किसी रूप में हमसे जुड़ा हुआ है. वहां भी राजनीति होती है, हालात कभी ऊपर जाते हैं तो कभी नीचे आते हैं. कभी वे हमारी तारीफ करते हैं, तो कभी आलोचना क्योंकि सच यह है कि उनकी घरेलू राजनीति में हम खुद एक बड़ा मुद्दा बन जाते हैं.

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