
'पहले 2 साल मुझे CM, फिर 3 साल DK शिवकुमार', सिद्धारमैया ने आलाकमान को सुझाया कर्नाटक में पावर शेयरिंग का फॉर्मूला
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कर्नाटक विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल करने के बाद कांग्रेस आलाकमान ने अब मुख्यमंत्री के चयन की प्रक्रिया तेज कर दी है. इस बारे में रविवार को बेंगलुरु के एक होटल में सभी 135 विधायकों की बैठक हुई और मुख्यमंत्री पद के लिए उनकी राय जानी गई
कर्नाटक में शानदार जीत और स्पष्ट बहुमत मिलने के बाद कांग्रेस अब जल्द ही मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान कर सकती है. बेंगलुरु के एक होटल में रविवार को विधायक दल की बैठक हुई जिसमें पार्टी के सभी नवनिर्वाचित 135 विधायकों ने हिस्सा लिया. मुख्यमंत्री का नाम तय करने के लिए विधायकों ने वोटिंग की. विधायकों में किसी ने शिवकुमार, तो किसी ने सिद्धारमैया, किसी ने डॉक्टर जी परमेश्वर, किसी ने खड़गे तो किसी ने लिंगायत नेता एमबी पाटिल के नाम का सुझाव दिया. कुछ विधायकों ने पार्टी हाईकमान पर फैसला छोड़ दिया.
पर्यवेक्षक बैलट बॉक्स को कांग्रेस आलाकमान तक तक ले जाएंगे और खड़गे के सामने खोलकर वोटों की गिनती करेंगे.अधिकतम मत प्राप्त करने वाले नेता का नाम गुप्त रखा जाएगा क्योंकि, मतदान केवल राय जानने के लिए ऐसा किया गया था. सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार को आज शाम तक दिल्ली बुलाया गया है. चर्चा के बाद मंगलवार या बुधवार को फैसला लिया जा सकता है. सूत्रों के मुताबिक, गुरुवार को नए सीएम और 30 कैबिनेट सदस्यों द्वारा शपथ ली जा सकती है.
सूत्रों के मुताबिक, सिद्धारमैया ने सत्ता में साझेदारी का सुझाव देते हुए कहा कि पहले 2 साल उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाए और बाद के 3 साल डीके शिवकुमार को सीएम की कुर्सी सौंपी जाए. सिद्धारमैया ने कहा, 'चूंकि वह उम्रदराज़ हैं, इसलिए वह कम से कम 2024 के संसदीय चुनावों तक पहले चरण में सरकार चलाना चाहते हैं.' हालांकि शिवकुमार ने सिद्धारमैया के इस फॉर्मूले को राजस्थान और छत्तीसगढ़ का हवाला देते हुए खारिज कर दिया.
दोनों नेताओं ने सभी विधायकों से अपने-अपने लिए समर्थन मांगा. सूत्रों का कहना है कि दोनों ही नेताओं ने बराबर दावेदारी की है. आलाकमान के लिए बड़ी चुनौती यह है कि अगर डीके को विधायक दल नेता के रूप में चुना जाता है तो सिद्धारमैया को फिर कैसै मनाया जाए और उन्हें क्या जिम्मेदारी दी जाए. शिवकुमार का पक्ष इसलिए भी मजबूत है क्योंकि पार्टी पिछले तीन वर्षों में उनके द्वारा किए गए प्रयासों से अच्छी तरह वाकिफ है.
अगर डीके शिवकुमार को सीएम नहीं बनाया जाता है तो कैडर को गलत संदेश जा सकता है क्योंकि उन्होंने पार्टी के वफादार सिपाही के रूप में अपनी एक अलग छवि बनाई है. यहां अब डीके का संगठनात्मक कौशल को तरजीह दी जाए या फिर सिद्धारमैया के प्रशासनिक कौशल को, इस पर फैसला लेना आलाकमान के लिए चुनौती से कम नहीं है.

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