
धराली और हर्षिल में आई आपदा का सच आया सामने, श्रीकांत पर्वत के पर मोरेन ढहने से हुई तबाही
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SDRF और NIM की टीम ने एक अध्ययन में धराली-हर्षिल में आई आपदा के कारणों को लेकर चौंकाने वाला खुलासा किया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि श्रीकांत पर्वत के आधार के पास लगभग 4,800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित क्षेत्र से तीन दिशाओं से भारी मात्रा में मलबा नदी की सतह की ओर आ रहा था, जिसके कारण हिमनद नीचे खिसक गया.
उत्तराखंड राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) और नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (NIM) के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन ने धराली और हर्षिल में आई आपदा के कारणों को उजागर किया है. दोनों संगठनों की एक टीम खीर गंगा नदी के उद्गम स्थल की अध्ययन यात्रा पर गई थी, जहां उन्होंने महत्वपूर्ण फुटेज कैप्चर किए जो इस तबाही की गंभीरता को दिखाते हैं.
टीम द्वारा बनाए गए वीडियो में दिखाया गया है कि श्रीकांत पर्वत के आधार के पास लगभग 4,800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित क्षेत्र से तीन दिशाओं से भारी मात्रा में मलबा नदी की सतह की ओर आ रहा था. ये क्षेत्र एक पुराना हिमोढ़ क्षेत्र है, जहां मोरेन (हिमनद) जमा हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि 5 अगस्त को ये मोरेन (ग्लेशियर द्वारा बहा कर लाया गया मलबा) जमाव ढह गए या नीचे खिसक गया, जिसके कारण खीर गंगा में भारी तबाही मच गई.
'2021 में आई आपदा से मिलती-जुलती है घटना'
ये घटना कुछ हद तक 2021 में उत्तराखंड में आई बाढ़ से मिलती-जुलती है जो चमोली जिले के तपोवन-रेनी क्षेत्र में हिमनद टूटने के कारण हुई थी. उस वक्त आई अचानक बाढ़ ने तपोवन विष्णुगढ़ हाइड्रोपावर प्लांट को भारी नुकसान पहुंचाया था और कई लोगों की जान चली गई थी.
वहीं, SDRF और NIM की इस संयुक्त जांच ने इस क्षेत्र में भविष्य की आपदाओं को रोकने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी भी प्रदान की है. विशेषज्ञ अब इस क्षेत्र में मोरेन और हिमनद गतिविधियों की निगरानी की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके.

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