
दिल्ली का बॉस कौन? फिर SC की चौखट तक जाएगी कानूनी जंग! केंद्र को बतानी पड़ेगी अध्यादेश लाने की वजह
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सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से दिल्ली सरकार अधिकारियों के तबादले का जो अधिकार मिला था, उसे केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर फिर से उपराज्यपाल को सौंप दिया है. केंद्र के इस फैसले की केजरीवाल सरकार ने तीखी आलोचना की है.
राजधानी में अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया है, जिसके बाद एक बार फिर दिल्ली और केंद्र सरकार की जंग अदालत की चौखट पर पहुंच सकती है.
अगर दिल्ली सरकार अध्यादेश को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में वापस जाती है, तो केंद्र को यह साबित करना होगा कि इस मामले में 'तत्काल कार्रवाई' की आवश्यकता थी और अध्यादेश सिर्फ विधायिका में बहस और चर्चा को दरकिनार करने के लिए जारी नहीं किया गया था.
बता दें कि एक अध्यादेश को अदालत में तब चुनौती दी जा सकती है जब एक पक्षकार को ये लगे कि इस अध्यादेश को लागू करवाने के लिए तत्काल कार्रवाई की जरूरत थी या नहीं?
सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार के वकील रहे अभिषेक मनु सिंघवी केंद्र के अध्यादेश की आलोचना की है. उन्होंने लिखा, 'कानून से अनभिज्ञ लोगों द्वारा तैयार किया गया अध्यादेश. सिविल सेवा पर दिल्ली सरकार को अधिकार संविधान पीठ ने दिया था जिसे अध्यादेश के जरिये पलट दिया गया. संघीय व्यवस्था, बुनियादी ढांचे के हिस्से को खत्म किया गया. अधिकारियों की जवाबदेही को बिल्कुल उलट दिया गया है. मुख्यमंत्री उसकी अध्यक्षता करेंगे जहां उनके पास खुद बहुमत नहीं है.' सिंघवी के ट्वीट्स को अरविंद केजरीवाल ने भी रिट्वीट किया है.
सिंघवी ने कहा, 'संवैधानिक सिद्धांत यह है कि नौकरशाह चुनी हुई सरकार के प्रति जवाबदेह होते हैं. लेकिन आपने नौकरशाहों को अन्य नौकरशाहों का प्रभारी बना दिया है. आप कैसे अध्यादेश के जरिए संविधान का उल्लंघन कर सकते हैं? इसे चुनौती दी जाएगी और इसे संसद के जरिए पारित नहीं होने दिया जाएगा.'
सरकार दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए अध्यादेश लाई जिसे लेकर लेकर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने अंदेशा जताया था. केंद्र ने शुक्रवार को एक अध्यादेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि दिल्ली के नौकरशाहों के तबादलों और पोस्टिंग पर अंतिम अधिकार उपराज्यपाल का था, न कि दिल्ली सरकार का.

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