
ग्राउंड रिपोर्ट: बजरंग पूनिया की सियासत में एंट्री से उनके गांव खुड्डन के पहलवानों की बदलेगी तकदीर? ऐसे हैं हालात
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स्टार रेसलर बजरंग पूनिया की राजनीति में एंट्री को हरियाणा चुनाव में काफी अहम माना जा रहा है. लेकिन सवाल यह है कि बजरंग के राजनीति में जाने पर उनके गांव खुड्डन के लोग और खासकर वहां के पहलवान क्या राय रखते हैं? जानिए aajtak.in की ये ग्राउंड रिपोर्ट.
विधानसभा चुनाव के ऐन पहले हरियाणा की राजनीति में मशहूर पहलवान बजरंग पू्निया की नाटकीय एंट्री हुई. तब से हर जगह उनके अखिल भारतीय किसान कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनने की चर्चा है. लेकिन ये तो हुई उन लोगों की बात, जो दूर से बजरंग को जानते हैं. पर उन लोगों का क्या, जो उन्हें हमेशा से देखते आए हैं. उनके पॉलिटिक्स में आने के फैसले को गांव के लोग और साथी पहलवान किस नजर से देखते हैं, ये जानने के लिए aajtak.in पहुंचा बजरंग के गांव खुड्डन.
ओलंपिक मेडलिस्ट भारतीय पहलवान बजरंग पूनिया इन दिनों सुर्खियों में हैं. 30 साल के बजरंग ने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की है. अब वह राजनीति के अखाड़े में अपनी किस्मत आजमाएंगे. उन्होंने इसके लिए रेलवे की नौकरी तक छोड़ दी.
जिस तरह से सियासी गलियारों में बजरंग के नाम की चर्चा है, या इससे पहले जो उनका करियर रहा, कोई भी सोच सकता है कि उनके गांव की सूरत भी शानदार होगी. लेकिन ऐसा है नहीं. खुड्डन गांव की सड़कें बारिश से बदहाल दिखीं. जगह-जगह पानी भरा हुआ. यहीं बजरंग का वो घर भी है, जहां उन्होंने अपना बचपन बिताया. अभी वहां किरायेदार रह रहे हैं. उन्हीं में से एक बनीता ने बताया कि जब भी बजरंग गांव आते हैं, तो इसी घर में रुकते हैं.
हम घर के भीतर पहुंचे. आम हरियाणवी घर, जहां पहले दरवाजे के बाद एक बैठक है. यहीं बैठकर बड़े-बुजुर्ग हुक्का पीते हैं, या कुछ कम जानकार मेहमान भी यहीं रुकते और चाय-पानी पीते हैं.
छोटे से गांव से निकलकर कैसे स्टार बने बजरंग पूनिया?
महज 5-6 साल की उम्र में बजरंग ने पहलवानी के दांव-पेच सीखने शुरू कर दिए थे. बारिश हो, धूप या ठंड- किसी भी मौसम का उनकी प्रैक्टिस पर कोई असर नहीं पड़ता था. उनके सिर पर बस रेसलिंग का जुनून था. बजरंग के दादा और पिता भी पहलवान रहे हैं. लेकिन घर के हालात ऐसे नहीं थे कि बजरंग के पहलवान वाले खान-पान का खर्च उठाया जा सके.

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