गोलियां खत्म हुईं तो पाकिस्तानी हमलावरों को खंजर से मारा...ऐसे थे 'परमवीर' करम सिंह
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Lance Naik Karam Singh: पाकिस्तानी हमलावरों के कई हमलों को बेकार कर दिया. जख्मी थे लेकिन दुश्मनों पर ग्रैनेड फेंकते रहे. गोलियां खत्म हुईं तो दुश्मनों को खंजर से मौत के घाट उतार दिया था. दूसरे फौजी जिसने जीवित रहते हुए परमवीर चक्र हासिल किया. जवाहरलाल नेहरू भी हुए थे इनकी बहादुरी से प्रेरित. आइए जानते हैं परमवीर करम सिंह की बहादुरी की कहानी...
पाकिस्तान के पश्तून कबिलाइयों ने आजादी के ठीक बाद 1947 में कुपवाड़ा सेक्टर पर हमला किया. उन्होंने टिथवाल पर अपना पूरा कब्जा जमा लिया. यह इलाका सीमा के ठीक पास था. 23 मई 1948 को यह क्षेत्र पाकिस्तान से मुक्त करा लिया गया. लेकिन आदत से मजबूर पाकिस्तान फिर से टिथवाल पर कब्जा करना चाह रहा था. इसलिए उसने तुरंत अपने सैनिकों को हमला करने का आदेश दिया. मकसद था टिथवाल में मौजूद रीछमार गली और पूर्वी टिथवाल स्थित नस्तचूर दर्रे पर पूरा कब्जा हासिल करना.
पाकिस्तान बहुत दिनों से लड़ाई लड़ रहा था लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही थी. इसलिए उन्होंने 13 अक्टूबर 1948 की रात रीछमार गली पर भयानक हमला आरंभ कर दिया. इस दौरान लांस नायक करम सिंह 1 सिख फॉरवर्ड पोस्ट का नेतृत्व कर रहे थे. करम सिंह और उनकी टुकड़ी का हर सैनिक 10-10 पाकिस्तानियों से लड़ रहा था. लेकिन हिम्मत किसी की डोल नहीं रही थी.
जख्मी थे पर दुश्मन पर लगातार ग्रैनेड फेंकते रहे
पाकिस्तान की ओर से लगातार हो रही गोली बारी से लांस नायक करम सिंह जख्मी हो गए थे. लेकिन वो लगातार अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाए हुए थे. जख्मी हालत में भी कभी एक पोस्ट पर जाते तो कभी दूसरी पोस्ट पर. हथियार भी कम पड़ रहे थे. इसलिए बीच-बीच में दुश्मन पर ग्रैनेड फेंकते रहे. करम सिंह ने इस युद्ध के दौरान पाकिस्तान के कई हमले बेकार कर दिए.
दो दुश्मनों को पास जाकर मौत के घाट उतारा
पांचवें हमले के दौरान पाकिस्तान के दो सैनिक, करम सिंह की टुकड़ी के नजदीक पहुंच गए थे. मौका देखते ही करम सिंह ने खाई फांदकर दोनों दुश्मनों को खंजर से मौत के घाट उतार दिया. करम सिंह की सूज-बूझ व नेतृत्व क्षमता ने दुश्मनों के कुल कई हमलों को नाकाम सिद्ध कर दिया. इसके बाद 21 जून 1950 में लांस नायक करम सिंह को परम वीर चक्र से नावाज गया. करम सिंह दूसरे ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने जिंदा रहते हुए परमवीर चक्र हासिल किया था.
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