क्या United Nations चाहे तो रूस-यूक्रेन जंग रुकवा सकता है? जानिए, क्यों विवादों में घिरी रही UN की ताकत
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रूस-यूक्रेन जंग छिड़े सालभर से ज्यादा हो चुका. कई देश रूस पर सख्ती दिखा रहे हैं तो United Nations (संयुक्त राष्ट्र) भी लगातार युद्ध बंद करने की चेतावनी दे रहा है, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ रहा. UN को भले ही दुनिया की सबसे ताकतवर संस्था माना जाए लेकिन जंग रोकने की उसकी कोई भी कोशिश आज तक कामयाब नहीं हो सकी.
20वीं सदी के मध्य से लेकर अब तक कई युद्ध हुए. कई अब भी जारी हैं. ये सबकुछ यूएन की आंखों के नीचे हो रहा है. साल 1945 जब ये इंटरनेशनल संगठन बना तो सबसे बड़ा मकसद था शांति बनाए रखना. दुनिया कुछ ही समय के भीतर दो विश्व युद्ध झेल चुकी थी. ऐसे में ताकतवर देशों ने मिलकर तय किया कि एक अंब्रेला बनाया जाए और कई काम किए जाएं. साथ ही उन देशों पर शांति के लिए दबाव बनाया जाए जो लड़ाई-भिड़ाई का इरादा रखते हों.
इस तरह बना यूनाइटेड नेशन्स जून 1945 में सेन फ्रांसिस्को में एक बैठक हुई, जिसमें 50 देशों के लोग शामिल हुए. इनका नेतृत्व ब्रिटेन, अमेरिका, सोवियत संघ और चीन ने किया. भारत भी फाउंडिंग सदस्यों में से था. यहीं पर संयुक्त राष्ट्र चार्टर तैयार हुआ. चार्टर की लाइन थी- वी द पीपल ऑफ द यूनाइटेड नेशन्स यानी हम संयुक्त राष्ट्र के लोग! ये लोग यानी देश दो चीजों पर फोकस कर रहे थे- एक युद्ध से हर हाल में बचना और ह्यूमन राइट्स को बचाए रखना. धीरे-धीरे इसमें 193 देश शामिल हो गए.
कई फायदे थे इसकी सदस्यता के यूनाइटेड नेशन्स की सदस्यता पाने के कई फायदे भी थे. जैसे इससे किसी भी मुश्किल के समय मदद पाना आसान हो जाता है क्योंकि कई ताकतवर देश भी असेंबली में होते हैं. अगर कोई देश यूएन से मान्यता-प्राप्त हो तो उसे कर्ज भी आसानी से मिलता है और सदस्य होने के नाते बाकी कई मदद भी. जैसे महामारी या किसी बीमारी के लिए यूएन की शाखाएं देशों में जाकर काम करती हैं. बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर ये काफी खर्च करता है. ये बिल्कुल वैसा ही है, जैसे किसी ताकतवर आदमी का दोस्त होना. उसके शक्तिशाली सर्कल में आपको भी जगह मिल जाती है और धीरे-धीरे संबंध बढ़ते जाते हैं.
कहां से आते हैं यूएन के पास पैसे दुनियाभर में ह्यूमेनिटेरियन कामों के लिए जमकर पैसे खर्च करने वाले इस संगठन के पास पैसे दो तरीके से आते हैं. हर सदस्य देश को कुछ पैसे देने होते हैं. ये मेंडेटरी रकम है, जो देश की आबादी, उसकी जरूरतों और उसकी अमीरी-गरीबी के हिसाब से होती है.
फंडिंग का एक और भी तरीका है, वो है वॉलंटरी बेस पर पैसे मिलना. इसमें कोई अमीर देश चाहे तो वो यूएन को किसी खास काम के लिए पैसे दे सकता है, जैसे एजुकेशन या शांति-स्थापना के लिए. हालांकि फंडिंग का ये तरीका काफी विवादित रहा. कई बार आरोप लगे कि इस तरह से अमेरिका या दूसरे रईस देशों ने यूएन को अपने घर का संगठन बना लिया. अक्सर कई मीटिंग्स में यूएन पर अमेरिका या यूरोप की जबान बोलने का इलजाम लगता रहा.
सिक्योरिटी काउंसिल का रोल क्या रहा इसके पास एक सिक्योरिटी काउंसिल है, जिसमें 15 सदस्य हैं. ये संगठन का सबसे शक्तिशाली हिस्सा माना जाता है, जो किसी देश पर पाबंदियां लगा सकता है या मिलिट्री दखल भी दे सकता है. जैसे साल 2011 में लिबिया में किया गया था, जब वहां गृहयुद्ध हो रहा था. सबसे पावरफुल होने के साथ ही ये हिस्सा सबसे विवादित भी रहा. अक्सर कहा जाता रहा कि सिक्योरिटी काउंसिल बड़े देशों की गलतियों को अनदेखा करती है. मजे की बात ये है कि दुनिया से शांति की अपील करने वाली इस शाखा के परमानेंट सदस्य वो देश हैं, जिन्होंने दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान तमाम कत्लेआम मचाया- अमेरिका, ब्रिटेन, चीन फ्रांस और रूस (तब सोवियत संघ). बाकी 10 सदस्य देश हर दो साल के लिए चुने जाते हैं, यानी ये खास ताकत नहीं रखते.