
केजरीवाल के अरेस्ट पर अमेरिकी टिप्पणी से नाराज भारत, घरेलू मामलों में विदेशी दखल कितना जायज, क्या कहता है इंटरनेशनल लॉ?
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दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर अमेरिका लगातार बोल रहा है, जबकि भारत इसे घरेलू मामला बताते हुए दखल न देने को कह चुका. यूनाइटेड नेशन्स का चार्टर हर देश को निजता का अधिकार देता है. कुछ ही हालात हैं, जिनमें कोई देश दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है. जानिए, कब तक कोई मामला निजी होता है, और कब दखलंदाजी गलत नहीं.
दिल्ली शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में अरविंद केजरीवाल को ईडी ने 21 मार्च को गिरफ्तार किया था. इसके अगले ही दिन अमेरिका का बयान आ गया कि उसकी सरकार केजरीवाल के अरेस्ट पर नजर बनाए हुए है, और मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए. इसे लेकर भारत ने भी कड़ा रुख अपनाते हुए पलटवार किया कि हमारे यहां कानूनी कार्रवाई पर अमेरिकी विदेश मंत्रालय का बयान गलत है. डिप्लोमेसी में उम्मीद रहती है कि देश एक-दूसरे के घरेलू मसलों और संप्रभुता का सम्मान करेंगे. वरना अव्यवस्था बन जाती है. भारत के इस जवाब के बाद भी अमेरिका ने दोबारा मिलती-जुलती बात कह डाली. उसने दोहराया कि वो अपने स्टैंड पर कायम है.
ये तो हुआ भारत-अमेरिका के बीच का मसला. लेकिन अक्सर ही दो देशों में इस तरह की बातचीत सुनाई पड़ जाती है. चीन भी कई बार लोगों से अपने आंतरिक मामलों से दूर रहने को चेताता है.
इंटरनल अफेयर और पब्लिक अफेयर के बीच मामूली सा फर्क है. ठीक वैसा ही कि जब तक पड़ोसी के घर में बहस की आवाजें आती रहें, आप बाहर रहते हैं. लेकिन आवाज बढ़ते ही या किसी तरह की दुर्घटना का डर होते ही आप पुलिस को कॉल कर दें, या खुद उस घर का दरवाजा खटखटा दें. यही बात देशों पर भी लागू होती है.
संयुक्त राष्ट्र चार्टर के आर्टिकल 51 में समानता की बात है. इसमें सभी देश एक समान हैं, चाहे उनका आकार आर्थिक या सैन्य ताकत कितनी भी अलग हो. इस नियम के अनुसार, कोई भी देश अपने यहां के भीतरी मामलों पर खुद कंट्रोल रखता है, और बाहर से गैरजरूरी हस्तक्षेप नहीं स्वीकारता. इसे प्रिंसिपल ऑफ नॉन-इंटरवेंशन कहते हैं.
किसे कहते हैं हस्तक्षेप केवल सैन्य दखल या हमले की सीधी या अपरोक्ष धमकी देना ही दखलंदाजी नहीं है, बल्कि किसी भी तरह की टिप्पणी करना भी इंटरवेंशन कहलाता है. अगर देश छोटा है, और बड़े देश के कुछ भी कहने का उसपर असर हो सकता है, तब तो खास सावधानी बरतने की बात यूएन में है ताकि वो डरकर कोई फैसला न ले. यह दूरी घरेलू, राजनैतिक और आर्थिक- सारे मामलों में लागू होती है. ये बात वैसी ही है, जैसे किसी वयस्क को उसके फैसले लेने पर तब तक नहीं टोका जा सकता, जब तक कि उससे किसी और को, या खुद उसे भारी नुकसान न हो रहा हो.

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