
ईरान की खैबर शेकन मिसाइलों के लिए चीन ने दिया 1000 टन रॉकेट ईंधन! अब खुलने लगी ड्रैगन की चालबाजियों की पोल
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चीन चुपके से कैसे ईरान की मदद कर चुका है. इसकी पोल खुल चुकी है. जनवरी 2025 में चीन ने ईरान को 1000 टन सोडियम परक्लोरेट भेजा, जिससे 260 खैबर शेकन या 200 हाज कासेम मिसाइलें बन सकती हैं. यह शिपमेंट MV गोल्बन और जयरान जहाजों से बंदर अब्बास पहुंचा. इससे ईरान की मिसाइल ताकत बढ़ेगी, जिससे तनाव बढ़ सकता है.
2025 की शुरुआत में एक चौंकाने वाली खबर ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचा. चीन से ईरान को 1000 टन सोडियम परक्लोरेट भेजा गया. ये एक रासायनिक पदार्थ जो रॉकेट ईंधन बनाने में उपयोग होता है. यह मात्रा इतनी है कि इससे ईरान 260 खैबर शेकन या 200 हाज कासेम मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें बना सकता है.
22 जनवरी, 2025 को छपी फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार यह शिपमेंट इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के लिए था. इसे दो ईरानी जहाजों, MV गोल्बन और MV जयरान से बंदर अब्बास बंदरगाह तक पहुंचाया गया. आइए जानते हैं सोडियम परक्लोरेट की भूमिका और खैबर शेकन मिसाइल की विशेषताएं. दो पश्चिमी देशों के सुरक्षा अधिकारियों के हवाले से बताया गया कि ईरान के दो कार्गो जहाज, गोल्बन और जयरान चीन से 1000 टन सोडियम परक्लोरेट लेकर ईरान के लिए रवाना होने वाले हैं.
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रिपोर्ट में कहा गया कि यह सोडियम परक्लोरेट 960 टन अमोनियम परक्लोरेट बना सकता है, जो सॉलिड रॉकेट प्रणोदक (प्रोपेलेंट) का 70% हिस्सा है. इससे 1300 टन प्रोपेलेंट तैयार हो सकता है. जो 260 मध्यम दूरी की ईरानी मिसाइलों, जैसे खैबर शेकन या हाज कासेम के लिए पर्याप्त है.
रिपोर्ट के अनुसार, गोल्बन जहाज ने 34 कंटेनर (20 फीट) और जयरान ने 24 कंटेनर लोड किए. ये जहाज ताइकांग बंदरगाह (शंघाई के उत्तर) से रवाना हुए और बंदर अब्बास के लिए तीन सप्ताह की यात्रा पर निकले. दोनों जहाज इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान शिपिंग लाइन्स (IRISL) के हैं, जो IRGC से जुड़ा है और अमेरिकी प्रतिबंधों के दायरे में है.

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