
इलाहाबाद HC जज के आदेश पर SC की कड़ी टिप्पणी, आपराधिक मामलों की सुनवाई से हटाने की सिफारिश
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सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के आदेश को चौंकाने वाला बताते हुए उसे रद्द कर दिया. कोर्ट ने सिफारिश की कि संबंधित जज को फिलहाल आपराधिक मामलों की स्वतंत्र सुनवाई से हटाकर सीनियर जज की पीठ में बैठाया जाए. मामला 7.23 लाख रुपये की बकाया राशि से जुड़े एक आपराधिक विवाद से संबंधित था.
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के न्यायिक प्रक्रिया के जान और विवेक पर अचरज जताते हुए उन्हें सीनियर जज की पीठ में बैठाने की सिफारिश की. जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने यह भी कहा कि इस जज को फिलहाल स्वतंत्र रूप से कोई भी आपराधिक मामला सुनवाई के लिए आवंटित नहीं किया जाना चाहिए.
विवादित आदेश और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश पर गंभीर आपत्ति जताई, जिसमें एक आपराधिक शिकायत को यह कहते हुए रद्द करने से इनकार कर दिया गया था कि धन की वसूली के लिए दीवानी मुकदमे का उपाय प्रभावी नहीं था. आदेश को रद्द करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आदेश पारित करने वाले उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को एक वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ खंडपीठ में बैठाया जाना चाहिए. इसके अलावा, न्यायालय ने हाईकोर्ट के एकल जज पीठ के आदेश को चौंकाने वाला करार दिया और इस मामले को दूसरी पीठ के समक्ष नए सिरे से विचार के लिए हाईकोर्ट के पास वापस भेज दिया.
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न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार द्वारा पारित एक आदेश के विरुद्ध एक विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी. मामला ललिता टेक्सटाइल्स द्वारा दायर आपराधिक शिकायत से जुड़ा है, जिसमें आरोप था कि अपीलकर्ता को विनिर्माण में प्रयुक्त धागा आपूर्ति किया गया था और ₹723,711 की राशि बकाया थी. बयान दर्ज होने के बाद अपीलकर्ता के विरुद्ध सम्मन जारी हुआ.
जब अपीलकर्ता हाईकोर्ट पहुंचे, तो न्यायमूर्ति कुमार ने कहा कि शिकायतकर्ता एक छोटी व्यावसायिक फर्म है और राशि बड़ी है. दीवानी मुकदमे में वर्षों लग सकते हैं और शिकायतकर्ता वित्तीय रूप से मुकदमा चलाने में सक्षम नहीं होगा. इसे दीवानी विवाद मानना न्याय का उपहास होगा.

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