
अमेरिकी सेना ने क्लोज कॉम्बैट के लिए बनवाया था M4 कार्बाइन... कठुआ के हमलावर आतंकियों तक कैसे पहुंचा?
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अमेरिका ने अपनी सेना के लिए जिस असॉल्ट राइफल को बनवाया था. वह आतंकियों तक कैसे पहुंचा? कैसे दुनियाभर के आतंकी समूह M4 Carbine का इस्तेमाल कर रहे हैं? इस तरह के हथियारों का इस्तेमाल बताता है कि दुनियाभर में सिक्योरिटी को लेकर कहीं न कहीं चूक हो रही है. नुकसान हम सबको उठाना होगा.
कठुआ में आतंकियों ने भारतीय जवानों पर जो गोलीबारी की उसकी जांच से पता चला है कि ये हमला M4 Carbine से किया गया है. 26 जून 2024 को डोडा में जो एनकाउंटर हुआ था. उसमें भी मारे गए आतंकियों के पास से यही असॉल्ट राइफल मिली थी. इससे पहले कठुआ में 12 जून को भी आतंकियों से हुए मुठभेड़ में यही राइफल मिली थी. सवाल ये है कि अब तक AK-47 या उसके जैसी बंदूकें लेकर चलने वाले आतंकियों को अचानक ये घातक गन कहां से मिल रही हैं?
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ये दुनिया की अत्यधिक भरोसेमंद असॉल्ट राइफलों में से एक है. 1987 से इसका प्रोडक्शन हो रहा है. अब तक 5 लाख से ज्यादा M4 Carbine बन चुकी हैं. 30 राउंड गोलियों वाली मैगजीन के साथ इसका वजन 3.52 किलोग्राम होता है. जिसे लेकर चलना आसान है. अमेरिकी सेना के लिए बनाई गई यह असॉल्ट राइफल क्लोज कॉम्बैट यानी नजदीकी लड़ाई में इस्तेमाल होती आई है. यह अमेरिकी इन्फ्रैंट्री का पहला हथियार है.
पहले जानते हैं इसकी हथियार की खासियत...
राइफल का पिछला हिस्सा (Stock) खोलने पर यह करीब 33 इंच लंबी हो जाती है. बंद करने पर चार इंच छोटी. इसकी बैरल यानी नली की लंबाई 14.5 इंच है. इसमें 5.56x45 mm की नाटो ग्रेड गोलियां लगती हैं. यह बंदूक एक मिनट में 700 से 970 राउंड गोलियां दाग सकती है. यह निर्भर करता है उसे चलाने वाले पर.

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