
अमेरिका के दो दुश्मन और मोहरा पाकिस्तान... ऑपरेशन सिंदूर के बाद ट्रंप कहीं अपना पावरगेम साधने में तो नहीं जुट गए?
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ऑपरेशन सिंदूर पर पहले दखल न देने की बात कहना फिर भारत-पाकिस्तान के बीच जंगबंदी के लिए एक्टिव हो जाना ट्रंप का एक रणनीतिक कदम हो सकता है, जिसका उद्देश्य एशिया और मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक संतुलन को अमेरिका के पक्ष में करना है. पाकिस्तान को चीन की गोद से बाहर करना और ईरान में अपना प्रभाव बढ़ाना अमेरिका के दो प्रमुख लक्ष्य प्रतीत होते हैं. यह पावरगेम न केवल क्षेत्रीय, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी गहरे प्रभाव डाल सकता है.
भारत-पाकिस्तान जंग के हाई मोमेंट के बीच आए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का समझौते वाला ट्वीट किसी फिल्म के क्लाईमैक्स सीन की तरह था. करोड़ों भारतीयों को ये ट्वीट नागवार गुजरा. पाकिस्तान को लाइफटाइम सबक सिखाने पर आमादा भारतीय समझ ही नहीं पाए कि ट्रंप ने यहां टंगड़ी क्यों लगा दी. ट्रंप को अमूमन भारत में सहयोगी और बढ़िया दोस्त के रूप में माना जाता था. लेकिन इस ट्वीट से ये मैसेज गया कि उन्होंने पाकिस्तान पर भारी पड़ रहे भारत पर जंगबंदी थोप सी दी. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि ट्रंप ने ये यू टर्न क्यों लिया?
गौरतलब है कि भारत-पाकिस्तान की लड़ाई के बीच में ही अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने कहा था कि अमेरिका इस लड़ाई में कोई दखल नहीं देगा. लेकिन इस घोषणा के मात्र कुछ ही घंटे बाद अमेरिका इस जंग को रोकने में सक्रिय भूमिका निभा रहा था.
दरअसल ट्रंप की नीतियों में आए बदलाव की वजह अमेरिका का पावरगेम है. जिसके फोकस में एशिया और मिडिल ईस्ट का पावरगेम है. इस पावरगेम का मकसद पाकिस्तान को चीन के चंगुल से निकालना और अमेरिका के खेमे में लाना है. ताकि पाकिस्तान में रहकर ईरान पर नजर रखी जा सके. इस पूरे गेम में पाकिस्तान अमेरिका का मोहरा मात्र है. ट्रंप ने अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए पाकिस्तान को भारत से बुरी तरह से मात खाते-खाते बचा लिया. निश्चित तौर पर ट्रंप के इस कदम की भारत में सराहना नहीं हुई.
दक्षिण एशिया के इस पूरे समीकरण को अब हम आपको समझाते हैं.
ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में और हाल के बयानों में चीन को वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा है. उनकी टैरिफ नीति और आर्थिक प्रतिबंधों की घोषणा इस बात की ओर इशारा है कि वे चीन की आर्थिक और सैन्य विस्तार पर रोक चाहते हैं. इस कहानी को समझने से पहले हम आपको 2011 की उस घटना को बताते हैं जो अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों में निर्णायक मोड़ साबित हुआ.
ये घटना थी दुनिया के मोस्ट वांटेड आतंकी और 9/11 के मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन के खात्मे की.अमेरिका द्वारा पाकिस्तान के एबटाबाद में सालों से छिपकर बैठे लादेन को ढेर करना अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों में गहरा अविश्वास लेकर आया. इससे अमेरिका को लगा कि जिस पाकिस्तान को वो आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अपना सहयोगी बनाया, अरबों डॉलर की मदद दी, वही पाकिस्तान उसके नंबर वन दुश्मन को छिपाकर रख रहा था. अमेरिका को पाकिस्तान की दोगली चाल समझ में आने लगी. पाकिस्तान में लादेन को एक सैन्य अकादमी के बगल में बने इमारत में छिपाकर रखा था. ताकि किसी को शक न हो.

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