
Uttarakhand@22: उत्तराखंड का वो सपना जो 22 साल में कोई भी सरकार नहीं कर सकी पूरा
AajTak
उत्तराखंड को बने पूरे 22 साल हो गए हैं. इस खूबसूरत पहाड़ी राज्य ने पिछले 22 सालों में काफी कुछ देख लिया है. हर सरकार के कार्यकाल में विकास भी पूरा हुआ है, लेकिन एक ऐसा सपना भी है जिसे पिछले 22 साल से सिर्फ संजोया गया है, वो पूरा आज तक नहीं हो पाया.
उत्तर प्रदेश के अलग होकर उत्तराखंड को अलग राज्य बने हुए 22 साल पूरे हो चुके हैं. 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड का जन्म हुआ था. 22 सालों के सियासी सफर में काफी कुछ बदला, प्रदेश ने बहुत कुछ हासिल किया, पर उत्तराखंड को जो अबतक नहीं मिला है, वह है नए जिले. उत्तराखंड बनने के बाद से ही छोटी-छोटी प्रशासनिक इकाइयों के गठन की मांग उठती रही है, लेकिन धरातल पर उसे अबतक अमली जामा नहीं पहनाया जा सका.
यूपी से अलग होकर उत्तराखंड बना तो 13 जिले शामिल किए गए थे. आपदाओं से घिरे, विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले इस पहाड़ी राज्य में कई दूरदराज के इलाके जिला मुख्यालय से कई सौ किलोमीटर दूर हैं. पिछले 22 सालों में नए जिलों के गठन की मांग उठी है, लेकिन अभी तक एक भी जिला बढ़ नहीं सका है. हालांकि, इस दौर में निशंक सरकार से लेकर हरीश रावत सरकार तक ने नए जिलों के गठन को लेकर कदम बढ़ाया, लेकिन उसे पूरा नहीं कर सके.
दरअसल, उत्तराखंड में नए जिले गठन की मांग के पीछे की मुख्य वजह ये है कि प्रदेश के 10 पर्वतीय जिलों में विकास और मूल भूत जरूरतों की अलग-अलग मांग रही है. इसे देखते हुए राज्य गठन के दौरान ही छोटी-छोटी इकाइयां बनाने की मांग की गई. जिससे न सिर्फ प्रशासनिक ढांचा जन-जन तक पहुंच सके, बल्कि प्रदेश के विकास की अवधारणा के सपने को भी साकार किया जा सके.
उत्तराखंड में कोटद्वार, रानीखेत, प्रतापनगर, नरेंद्रनगर, चकराता, डीडीहाट, खटीमा, रुड़की और पुरोला ऐसे क्षेत्र हैं, जिनके जिला बनाने की मांग समय-समय पर उठती रही है. कई सामाजिक संगठनों के साथ ही राजनीतिक दलों ने भी इस आवाज को वक्त-वक्त पर बुलंद किया है. इसी साल चुनाव के दौरान उत्तराखंड की दोनों ही प्रमुख पार्टियों ने भी नए जिले बनाने का जनता से वादा किया था.
बाकि राज्यों में क्या है स्थिति?
उत्तराखंड के साथ नवंबर 2000 में छत्तीसगढ़ और झारखंड राज्य का भी गठन हुआ था. इन दोनों ही प्रदेशों में नए जिलों के गठन की बात करें तो अलग राज्य बनने के वक्त छत्तीसगढ़ में 16 जिले थे, लेकिन मौजूदा समय में बढ़कर 33 जिलें हो गए हैं. झारखंड के गठन के दौरान 18 जिले थे, लेकिन अब बढ़कर 24 जिले हो गए हैं. इस तरह छत्तीसगढ़ में 13 और झारखंड में 6 नए जिले बने. वहीं, उत्तराखंड की बात करें तो अलग राज्य बनने के वक्त प्रदेश में 13 जिले थे और 22 साल के बाद भी 13 ही जिले हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति को रूसी भाषा में भगवद गीता का एक विशेष संस्करण भेंट किया है. इससे पहले, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति को भी गीता का संस्करण दिया जा चुका है. यह भेंट भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को साझा करने का प्रतीक है, जो विश्व के नेताओं के बीच मित्रता और सम्मान को दर्शाता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को कई अनोखे और खास तोहफे भेंट किए हैं. इनमें असम की प्रसिद्ध ब्लैक टी, सुंदर सिल्वर का टी सेट, सिल्वर होर्स, मार्बल से बना चेस सेट, कश्मीरी केसर और श्रीमद्भगवदगीता की रूसी भाषा में एक प्रति शामिल है. इन विशेष तोहफों के जरिए भारत और रूस के बीच गहरे संबंधों को दर्शाया गया है.

चीनी सरकारी मीडिया ने शुक्रवार को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के उन बयानों को प्रमुखता दी, जिनमें उन्होंने भारत और चीन को रूस का सबसे करीबी दोस्त बताया है. पुतिन ने कहा कि रूस को दोनों देशों के आपसी रिश्तों में दखल देने का कोई अधिकार नहीं. चीन ने पुतिन की भारत यात्रा पर अब तक आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन वह नतीजों पर नजर रखे हुए है.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सम्मान में राष्ट्रपति भवन में शुक्रवार रात डिनर का आयोजन किया गया. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस डिनर में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को निमंत्रण नहीं दिया गया. इसके बावजूद कांग्रेस के सांसद शशि थरूर को बुलाया गया.

आज रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ शिखर वार्ता के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत–रूस मित्रता एक ध्रुव तारे की तरह बनी रही है. यानी दोनों देशों का संबंध एक ऐसा अटल सत्य है, जिसकी स्थिति नहीं बदलती. सवाल ये है कि क्या पुतिन का ये भारत दौरा भारत-रूस संबंधों में मील का पत्थर साबित होने जा रहा है? क्या कच्चे तेल जैसे मसलों पर किसी दबाव में नहीं आने का दो टूक संकेत आज मिल गया? देखें हल्ला बोल.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मंदिर में जमा पैसा देवता की संपत्ति है और इसे आर्थिक संकट से जूझ रहे सहकारी बैंकों को बचाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें थिरुनेल्ली मंदिर देवस्वोम की फिक्स्ड डिपॉजिट राशि वापस करने के निर्देश दिए गए थे. कोर्ट ने बैंकों की याचिकाएं खारिज कर दीं.







