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Premchand Jayanti: संकीर्ण राष्ट्रवाद को वर्तमान युग का कोढ़ समझते थे प्रेमचंद, रहस्य, रोमांच और तिलिस्म पर नहीं हमेशा समाज के सियाह पक्ष पर लिखा

Premchand Jayanti: संकीर्ण राष्ट्रवाद को वर्तमान युग का कोढ़ समझते थे प्रेमचंद, रहस्य, रोमांच और तिलिस्म पर नहीं हमेशा समाज के सियाह पक्ष पर लिखा

ABP News
Saturday, July 31, 2021 04:30:38 AM UTC

Premchand Jayanti: प्रेमचंद ने इस कदर बचपन से ही आर्थिक तंगी का सामना किया कि उनकी लेखनी में विकास के भागते पहिये की झूठी चमक कभी नहीं दिखी.

Premchand Jayanti:  प्रेमचंद यानी हिन्दी साहित्य में जिन्हें कहानियों का सम्राट माना जाता है. कहा जाता है कि किसी भी लेखक का लेखन जब समाज की गरीबी, शोषण, अन्याय और उत्पीड़न का लिखित दस्तावेज बन जाए तो वह लेखक अमर हो जाता है. प्रेमचंद ऐसे ही लेखक थे. उन्होंने रहस्य, रोमांच और तिलिस्म को अपने साहित्य में जगह नहीं दी बल्कि धनिया, झुनिया, सूरदास और होरी जैसे पात्रों से साहित्य को एक नई पहचान दी जो यथार्थ पर आधारित था. प्रेमचंद जैसे लेखक सिर्फ उपन्यास या कहानी की रचना नहीं करते बल्कि वो गोदान में होरी की बेबसी दिखाते हैं तो वहीं, कफन में घीसू और माधव की गरीबी और उस गरीबी से जन्मी संवेदनहीनता जैसे विषय जब कागज पर उकेरते हैं तो पढ़कर पाठक का कलेजा बाहर आ जाता है. साल 1880 और तारीख 31 जुलाई था, जब बनारस शहर से चार मील दूर लमही गांव में कहानियों के सम्राट प्रेमचंद पैदा हुए. उन्होंने बचपन में काफी गरीबी देखी. उनके पिता डाकखाने में मामूली नौकर के तौर पर काम करते थे. प्रेमचंद ने इस कदर बचपन से ही आर्थिक तंगी का सामना किया कि उनकी लेखनी में विकास के भागते पहिये की झूठी चमक कभी नहीं दिखी, बल्कि इसकी जगह लेखक ने आजादी की आधी से ज्यादा सदी गुजरने के बाद भी लालटेन-ढ़िबरी की रौशनी में जीने को मजबूर ग़रीब-गुरबों को अपनी कहानी का पात्र बनाया. अपने उपन्यास और कहानियों में गांव के घुप्प अंधेरे का जिक्र किया.
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