
Pearl Harbour Attack... जिससे शुरू हुआ था दूसरा विश्व युद्ध! यूक्रेन के अटैक को भी बताया जा रहा ऐसा
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यूक्रेन की ओर से रविवार को रूस के हवाई ठिकानों को निशाना बनाया और जमीन पर मौजूद 41 रूसी बमवर्षक विमानों को तबाह कर दिया. इस हमले ने जापान की तरफ से अमेरिका पर हुए पर्ल हार्बर अटैक की याद दिला दी है. यह वही हमला है जिससे दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हुआ है. आइए जानते हैं इसमें क्या-क्या हुआ था.
रूस और यूक्रेन के बीच चल रही तीन साल पुरानी जंग ने रविवार को एक नया और चौंकाने वाला मोड़ ले लिया. यूक्रेन ने रूस में घुसकर उसके सैन्य ठिकानों को निशाना बनाते हुए 'ऑपरेशन स्पाइडर वेब' को अंजाम दिया, जिसमें रूस के बमवर्षक जेट्स पूरी तरह तबाह हो गए. यूक्रेन की खुफिया एजेंसी एसबीयू (SBU) ने यह हमला ट्रकों में छिपे ड्रोन के ज़रिए किया, ट्रकों की छत खुलते ही ड्रोन उड़ाए गए और रूस की धरती पर कहर बरपा दिया.
इस हमले ने इतिहास के एक काले अध्याय की याद दिला दी और इस अटैक को उससे जोड़ा जा रहा है. 1941 में जापान द्वारा अमेरिका पर किया गया पर्ल हार्बर हमला. उस वक्त जैसे अमेरिका पर अचानक आसमान से तबाही बरसी थी, ठीक वैसे ही अब रूस ने अपनी सीमा के भीतर यूक्रेनी ड्रोन का घातक वार झेला है. तो आइए जानते हैं, पर्ल हार्बर पर हुए उस हमले में ऐसा क्या हुआ था, जो आज 80 से ज्यादा साल बाद भी किसी भी ‘सरप्राइज अटैक’ के संदर्भ में याद किया जाता है.
जानिए क्या था Pearl Harbour Attack........
7 दिसंबर 1941 की सुबह, हवाई द्वीप के ओआहू पर स्थित अमेरिकी नौसेना के पर्ल हार्बर अड्डे पर सब कुछ सामान्य लग रहा था. सूरज की पहली किरणें समंदर पर झिलमिला रही थीं और सैनिक अपनी रोज़मर्रा की ड्यूटी या आराम में लगे हुए थे, लेकिन ठीक सुबह 7 बजकर 48 मिनट पर, आसमान से मौत बरसने लगी.
जापान की इंपीरियल नेवी के 177 लड़ाकू विमान अचानक से पर्ल हार्बर (एक बंदरगाह) पर टूट पड़े. किसी को भनक तक नहीं लगी थी कि एक विशाल हमला होने वाला है. इन विमानों ने दो हिस्सों में बंटकर हमला किया. कुछ ने हवाई पट्टियों और खड़े विमानों को निशाना बनाया, तो कुछ ने बंदरगाह में खड़े विशाल युद्धपोतों पर टॉरपीडो और बम बरसाने शुरू कर दिए.
हमले के शुरुआती पांच मिनटों में ही चार अमेरिकी युद्धपोत बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए. यूएसएस ओक्लाहोमा और यूएसएस एरिज़ोना सबसे पहले निशाना बने. कुछ ही मिनटों बाद, एरिज़ोना का वह हिस्सा जिसमें बारूद रखा गया था, सीधे बम की चपेट में आ गया. एक भीषण विस्फोट हुआ और कुछ ही पलों में जहाज समंदर में समा गया. इस एक हमले में 1,177 नौसैनिक मारे गए.

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