
Jahangirpuri violence: सुप्रीम कोर्ट के आदेश की तामील की क्या है प्रक्रिया, जहांगीरपुरी में सवा घंटे तक क्यों नहीं हुआ पालन?
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Jahangirpuri demolition bulldozer: दिल्ली के जिस इलाके में शनिवार को दो समुदायों के बीच हिंसा भड़की थी, बुधवार को वहां बुलडोजर चला. सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति का आदेश दिया. हालांकि कुछ देर तक कार्रवाई जारी रही.
हनुमान जयंती पर हुई हिंसा के बाद दिल्ली के जहांगीरपुरी (Jahangirpuri violence) में अवैध कब्जों पर एमसीडी के चल रहे बुलडोजर पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. लेकिन जहांगीरपुरी में चल रहे बुलडोजर की कार्रवाई पर रोक के आदेश की तामील में देरी ने पूरी प्रक्रिया पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. आखिरकार क्या है सु्प्रीम कोर्ट के आदेश के पालन की प्रक्रिया और बुधवार को क्यों चीफ जस्टिस के आदेश के बावजूद सवा घंटे तक बुजडोजर की कार्रवाई नहीं रुकी? आइए जानते हैं सभी सवालों के जवाब.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कराने की एक तय प्रक्रिया और सिस्टम है. अर्जेंट सुनवाई के दौरान कोई अर्जेंट आदेश हो तो कोर्ट मास्टर फौरन अपने साथी समकक्ष अधिकारी को कोर्ट में बुलाकर उन्हें कोर्ट की जिम्मेदारी संभलवाते हैं और खुद अपने चेंबर में जाकर ऑर्डर टाइप कराते हैं. ऑर्डर की प्रति चलती कोर्ट में जज के सामने लाई जाती है. जज ऑर्डर पर दस्तखत करते हैं और आदेश संबंधित प्राधिकरण को अमल के लिए भेज दिया जाता है. सभी पक्षकारों के वकीलों की मौजूदगी में आदेश सुनाए जाते हैं. वकीलों को फिर अनुपालन के लिए कॉपी भी दी जाती है. अनुपस्थित वकीलों या पक्षकारों को ई-मेल या फिर रजिस्टर्ड डाक या स्पीड पोस्ट से भी आदेश की सार्टिफाइड कॉपी भेजी जाती है.
आदेश पर जज के दस्तखत जरूरी? कानून के जानकार और सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड नीरज गुप्ता के मुताबिक, आदेश मौखिक तौर पर दिया गया हो या नोट कराया गया हो, जरूरी ये नहीं है कि आदेश पर जज के दस्तखत और मुहर लगाकर प्रमाणित किया ही जाए. नीरज गुप्ता के मुताबिक जरूरी यह है कि आपात स्थिति में ऑर्डर की जानकारी संबंधित प्राधिकरण तक पहुंचाया जाए, क्योंकि आदेश की जानकारी पहुंचाने और उसकी तामील न होने की स्थिति में ऐसा नुकसान न हो जाए जिसे फिर दुरुस्त ना किया जा सके.
आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के आदेश के वक्त संबंधित सरकार या प्राधिकरण के स्टैंडिंग काउंसिल कोर्ट में मौजूद हों तो उनको आदेश मुहैया कराया जाता है. अगर कोई संबंधित वकील या अधिकारी मौजूद न हो तो सेंट्रल एजेंसी या फिर संबंधित एजेंसी को आदेश परिपालन के लिए भिजवाया जाता है. एक दस्ती ऑर्डर भी होता है जिसमें आपात स्थिति में ऑर्डर की कॉपी जल्दी मिल जाती है.
ऑर्डर भेजने के लिए फास्टर सिस्टम का भी इस्तेमाल हो सकता है इसके अलावा हाल ही में देश के चीफ जस्टिस एनवी रमणा ने फास्टर (FASTER) सिस्टम लॉन्च किया था. इसके जरिए भी जमानत या कोर्ट की प्रक्रिया से संबंधित कोई भी जानकारी पलक झपकते ही संबंधित विभाग, कोर्ट या जेल प्राधिकरण को भेजी जा सकती है. स्पष्ट है कि अब यह जांच का विषय है कि बुधवार को जहांगीरपुरी डेमोलिशन मामले में ऐसा क्यों नहीं हो पाया. सुप्रीम कोर्ट का स्टे आदेश 11 बजे जारी हुआ लेकिन सवा बारह (12.15) बजे तक नगर निगम और पुलिस अधिकारी ये दलील देते रहे कि उनके पास कोर्ट का आदेश नहीं आया है.
वैसे कोर्ट की मेंशनिंग के मामले में अर्जेंट नेचर के मामले में जीवन मरण या फिर डेमोलिशन के मामले भी शामिल हैं. इन मामलों में आधी रात को भी अदालत के दरवाजे खटखटाए जा सकते हैं. क्योंकि इनमें देरी होने से ऐसा नुकसान हो सकता है जिसे पलटा नहीं जा सकता. सुधार नहीं किया जा सकता.

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