India Today Conclave East 2022: नुपूर शर्मा केस में सुप्रीम कोर्ट ने कोई सीमा नहीं लांघी, बोले कानून एक्सपर्ट्स
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India Today Conclave East 2022: बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नुपूर शर्मा को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को लेकर लोगों के बीच अलग-अलग तरह की राय देखने को मिल रही है. वहीं सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व जज समेत अन्य लॉ एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कोई सीमा नहीं लांघी. जानिए इंडिया टुडे कॉनक्लेव ईस्ट 2022 में इसे लेकर और क्या बात हुई...
सुप्रीम कोर्ट ने हाल में बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नुपूर शर्मा की एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए तल्ख टिप्पणी की थी. इसके बाद अदालत के फैसले को लेकर सोशल मीडिया से लेकर अलग-अलग हलकों में इसे लेकर चर्चा होने लगी. कुछ लोगों ने इसे ज्यूडिशियल एक्टिविज्म करार दिया तो कुछ ने इसे लेकर और कुछ कहा.
लेकिन इंडिया टुडे कॉनक्लेव ईस्ट 2022 में लॉ एक्सपर्ट्स ने इस बारे में साफ कहा कि इसे लेकर अदालत ने कोई सीमा नहीं लांघी. इसमें सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व जज जस्टिस अशोक कुमार गांगुली भी शामिल हैं.
सुप्रीम कोर्ट का कमेंट वकील-जज की बातचीत है, आदेश नहीं जस्टिस अशोक कुमार गांगुली ने कहा-आजकल होता ये है कि किसी मामले में जो कोर्ट का ऑर्डर होता है, उसके बारे में रिपोर्ट नहीं होती. बल्कि सुनवाई के दौरान जज और वकील के बीच जो कन्वर्सेशन होता है, जो ओरल ऑब्जर्वेशन होता है, उसकी रिपोर्टिंग होती है. जज के ये ओरल ऑब्जर्वेशन आदेश का हिस्सा नहीं होते, ना ही किसी के लिए बाध्यकारी होते हैं. बल्कि ये फैसला सुनाने से पहले सोच-विचार करने की एक प्रक्रिया है.
गौरतलब है कि पैगंबर मुहम्मद साहब को लेकर नुपूर शर्मा की विवादित टिप्पणी के खिलाफ देश के अलग-अलग हिस्सों में मामले दर्ज किए गए हैं. नुपूर शर्मा ने इन सभी मामलों को दिल्ली शिफ्ट करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज करते हुए उनसे हाईकोर्ट जाने के लिए कहा.
सच की पड़ताल के लिए अपना मत रखते हैं जज इस मामले पर सीनियर एडवोकेट और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी अपनी बात रखी. उन्होंने कहा-जब भी कोई व्यक्ति किसी मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाता है, तो वह कोर्ट के न्यायाधिकार को जगाता है. इस मामले में भी यही हुआ और सच की पड़ताल करते हुए जज अपना मत रखते हैं. ये एक पार्टिसिपेटरी प्रोसेस है और आप इसमें भाग लेने से न्यायाधीशों को रोक नहीं सकते. लेकिन कोर्ट की ये ऑब्जर्वेशन किसी के लिए बाध्यकारी नहीं होती और ना ही उस व्यक्ति के कानूनी अधिकारों को कम करती है.
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