
6 डॉक्टर, 8 शहर और एक मकसद... दिल्ली ब्लास्ट के बाद सामने आया 'व्हाइट कॉलर टेरर' का नया चेहरा
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दिल्ली ब्लास्ट ने एक ऐसी परत खोली है जिसने आतंकवाद की पुरानी परिभाषा को ध्वस्त कर दिया है. अब आतंकी सिर्फ पहाड़ों में छिपे बंदूकधारी नहीं, बल्कि यूनिवर्सिटी पढ़े डॉक्टर, इंजीनियर और टेक-सेवी नौजवान बन चुके हैं. भारत के भीतर व्हाइट कॉलर टेरर का ऐसा नेटवर्क तैयार किया गया, जो मेडिकल पेशे की आड़ में देश को अस्थिर करने की साजिश रच रहा था.
दिल्ली ब्लास्ट ने देश की सुरक्षा एजेंसियों के सामने आतंकवाद की एक ऐसी तस्वीर पेश की है जिसने लंबे समय से चली आ रही मान्यताओं को पूरी तरह तोड़ दिया है. यह मिथक कि आतंकवाद गरीबी और अशिक्षा से उपजता है, इस ब्लास्ट की जांच के बाद बिल्कुल निराधार साबित हुआ है. इस हमले के पीछे जिन चेहरों का खुलासा हुआ, वे पढ़े-लिखे, डिग्रीधारी और समाज में भरोसेमंद माने जाने वाले लोग हैं.
इन 'व्हाइट कॉलर टेररिस्ट' ने साफ दिखा दिया है कि शिक्षा अब कई बार कट्टरपंथ को और अधिक खतरनाक हथियार बना देती है. ये नया रेडिकलाइज्ड वर्ग हमारे आपके बीच ही पनप रहा है, वो भी ऐसे चेहरों का मुखौटा लगाकर जिन पर आम तौर पर सबसे ज्यादा भरोसा किया जाता है. पढ़े-लिखे नौजवान, टेक-सेवी युवा और यहां तक कि ‘जान बचाने वाले डॉक्टर’ भी आतंकी मानसिकता लिए नजर आ रहे हैं.
डॉक्टर उमर नबी जैसे आतंकियों ने इस धारणा को तोड़ दिया कि प्रोफेशनल डिग्री पढ़ने वाले लोग कभी आतंकवाद का हिस्सा नहीं हो सकते. भारत दुनिया का एकमात्र देश है जिसका बंटवारा मजहब के आधार पर हुआ था. लेकिन बंटवारे के बावजूद वह कट्टर सोच खत्म नहीं हुई. देश के टुकड़े-टुकड़े करने वाली यह विचारधारा आज भी सक्रिय है. इसे दिल्ली से कश्मीर तक देखा-सुना जा सकता है.
कभी यह कश्मीर में ईजीडब्ल्यू नेटवर्क के रूप में दिखती है, तो कभी ‘डॉक्टर टेरर’ बन कर देश की राजधानी को रक्तरंजित कर देती है. इस ब्लास्ट में सामने आए छह डॉक्टर और आठ अलग-अलग शहरों में फैले उनके संपर्क इस बात का सबूत हैं कि भारत में मेडिकल पेशे की आड़ लेकर आतंकी ढांचा खड़ा किया जा रहा था. दिल्ली बम धमाके के बाद पूरा देश हाई अलर्ट पर है.
भारत सरकार इस घटना को आतंकी हमला घोषित कर चुकी है. जांच एजेंसियां इस विचारधारा की हर कड़ी को खंगाल रही हैं. दिल्ली से लेकर कश्मीर, हरियाणा से लेकर केरल तक इस नेटवर्क के तार किस तरह फैले हैं, इसका पूरा चैप्टर खुल रहा है. सवाल यह भी है कि कौन लोग इन नौजवानों को रेडिकलाइज कर रहे हैं? उनके दिमागों में यह 'आतंकी वायरस' किस तरह डाला जा रहा है?

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