सुप्रीम कोर्ट ने याद दिलाया बूथ कैप्चरिंग का दौर... जानें EVM आने से देश में कितना बदला चुनाव
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लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग से ठीक एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट में EVM-VVPAT को लेकर सुनवाई होगी. ये सुनवाई एडीआर की याचिका पर हो रही है. इससे पहले 16 अप्रैल को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बैलेट वाले दौर में कैसे बूथ कैप्चरिंग होती थी, उसे नहीं भूलना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट में EVM और VVPAT की पर्चियों के 100% मिलान की मांग वाली याचिका पर सुनवाई चल रही है. इस दौरान याचिकाकर्ता ने EVM की बजाय बैलेट पेपर से वोटिंग करवाने का सुझाव भी दिया. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि बैलेट पेपर के युग में कैसे बूथ कैप्चर किए जाते थे.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में EVM में पड़े वोटों और VVPAT की पर्चियों के 100% क्रॉस वेरिफिकेशन की मांग को लेकर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने याचिका दाखिल की है. इस पर जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच सुनवाई कर रही है.
मंगलवार को एडीआर की याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा, 'भारत में चुनाव कराना बहुत बड़ा काम है. कोई भी यूरोपीय देश ऐसा नहीं कर सकता. आप जर्मनी की बात कर रहे हैं, लेकिन वहां की आबादी कितनी है. मेरे गृह राज्य बंगाल की आबादी जर्मनी से कहीं ज्यादा है. चुनावी प्रक्रिया पर भरोसा बनाए रखिए. सिस्टम को गिराने की कोशिश मत कीजिए.'
एडीआर की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने जर्मनी का उदाहरण देते हुए बैलेट पेपर से चुनाव कराने की वकालत की थी. इस पर जस्टिस खन्ना ने बूथ कैप्चरिंग का जिक्र करते हुए कहा, 'हम सभी 60 के दशक में हैं. हमने देखा है कि जब EVM नहीं होती थी, तब क्या होता था. हमें आपको बताने की जरूरत नहीं है.'
भारत में कैसे आई EVM?
आजादी के बाद कई सालों तक भारत में चुनाव बैलेट पेपर से करवाए जाते थे. इसमें वोटर को बैलेट पेपर दिया जाता था. फिर वोटर अपने पसंदीदा उम्मीदवार के नाम के आगे मुहर लगाते थे और उसे बैलेट बॉक्स में डाल देते थे.
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