
समलैंगिक भी ले सकता है बच्चा गोद, सामान्य कपल से कितनी अलग है प्रक्रिया, सारे सवालों के जवाब
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सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इंकार कर दिया है. इसके साथ ही समलैंगिक कपल को बच्चा गोद लेने का अधिकार भी नहीं दिया है. कोर्ट ने साफ किया है कि समलैंगिक कपल संयुक्त रूप से बच्चा गोद नहीं ले सकता है. हालांकि, कानून में एकल व्यक्ति के बच्चा गोद लेने का नियम है. जानिए गोद लेने को लेकर किन नियम और शर्तों का पालन करना होता है.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सेम सेक्स मैरिज मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इंकार कर दिया है और केंद्र सरकार के सुझाव को स्वीकार किया है. केंद्र के सुझाव के मुताबिक, समलैंगिक से जुड़े मसले हल करने के लिए एक एक्सपर्ट कमेटी गठित की जाएगी, जिसमें समलैंगिक के हक और अधिकारों पर फैसला लिया जाएगा. पांच जजों की बेंच ने LGBTQIA+ समुदाय के लिए गोद लेने के अधिकार के खिलाफ 3:2 का फैसला सुनाया है.
ऐसे में हम आपको बताएंगे कि अगर कोई समलैंगिक बच्चा गोद लेना चाहता है तो उसके लिए कानून में क्या जरूरी नियम और शर्तें हैं और जनरल कपल से अलग क्या प्रक्रिया है. सारे सवालों के जवाब....
'समलैंगिक के गोद लेने के पक्ष में थे सीजेआई'
पहले जान लीजिए कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बच्चा गोद लेने के बारे में क्या कहा है. CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा, अविवाहित जोड़े को बच्चा गोद लेने से रोकने वाला प्रावधान गलत है, जिसकी वजह से समलैंगिक जोड़े को भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है. ये अनुच्छेद 15 का हनन है. उन्होंने कहा, इस बात का कोई सबूत रिकॉर्ड पर नहीं है कि सिर्फ शादीशुदा विषमलिंगी जोड़े ही बच्चे को स्थायित्व के साथ परवरिश दे सकते हैं. यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि अविवाहित जोड़े अपने रिलेशनशिप के लेकर गंभीर नहीं होते हैं. उन्होंने साफ किया कि एक समलैंगिक शख्स सिर्फ निजी हैसियत से ही बच्चा गोद ले सकता है.
'सेम सेक्स मैरिज को मान्यता नहीं'
जस्टिस संजय कौल ने सीजेआई के मत पर सहमति जताई. हालांकि, तीन अन्य जजों ने इस बात का विरोध किया. कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया है. फैसले में कहा, समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए संसद के पास कानून बनाने की शक्ति है. सीजेआई का कहना था कि अगर स्पेशल मैरिज एक्ट को खत्म कर दिया तो यह देश को आजादी से पहले के युग में ले जाएगा. स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव की जरूरत है या नहीं- यह संसद को तय करना है.

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