
सत्येंद्र जैन के खिलाफ भ्रष्टाचार के नहीं मिले कोई सबूत, PWD हायरिंग केस में CBI ने दाखिल की क्लोजर रिपोर्ट
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सत्येंद्र जैन को बड़ी राहत मिली है. साल 2018 में पीडब्ल्यूडी में क्रिएटिव टीम की नियुक्ति में भ्रष्टाचार के आरोपों से जुड़ी सीबीआई जांच में कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट स्वीकार कर ली है. अदालत ने कहा कि जांच में कोई आपराधिक गतिविधि या सरकार को नुकसान साबित नहीं हुआ. आम आदमी पार्टी ने इसे बीजेपी की साजिश करार दिया है.
आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता और दिल्ली के पूर्व पीडब्ल्यूडी मंत्री सत्येंद्र जैन को सोमवार को एक बड़ी राहत मिली. स्पेशल कोर्ट ने उनके खिलाफ सीबीआई द्वारा दर्ज 2018 के एक केस में क्लोज़र रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है. यह मामला पीडब्ल्यूडी विभाग में क्रिएटिव टीम की नियुक्ति में कथित भ्रष्टाचार से जुड़ा था. स्पेशल जज दिग विनय सिंह ने कहा कि जांच एजेंसी को इतने लंबे समय में कोई भी आपराधिक गतिविधि या सरकार को नुकसान का कोई सबूत नहीं मिला है. उन्होंने कहा कि आगे की कार्रवाई का कोई मकसद नहीं रह जाता.
यह केस सीबीआई ने 28 मई 2018 को एलजी ऑफिस से मिले रेफरेंस के आधार पर दर्ज किया था. आरोप था कि पीडब्ल्यूडी के तहत क्रिएटिव टीम की नियुक्ति के लिए एक प्राइवेट कंपनी को फायदा पहुंचाने के मकसद से टेंडर की शर्तों में बदलाव किया गया. एफआईआर दर्ज किए जाने के अगले ही दिन, यानी 29 मई 2018 को सीबीआई ने जांच शुरू की. हालांकि चार साल बाद एजेंसी ने कोर्ट में क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल की, जिसमें कहा गया कि "कोई आर्थिक लाभ, साजिश या भ्रष्टाचार का प्रमाण नहीं मिला."
सीबीआई की रिपोर्ट में बताया गया कि पीडब्ल्यूडी में शहरी नियोजन और ग्राफिक डिजाइन जैसे स्पेशलाइज्ड कामों के लिए पर्याप्त स्टाफ नहीं था. ऐसे में आउटसोर्सिंग एजेंसी से प्रोफेशनल्स की नियुक्ति करना एक सामान्य प्रक्रिया थी. चयन की प्रक्रिया में पारदर्शिता बरती गई और ओपन एडवर्टाइजमेंट और इंटरव्यू के जरिए उम्मीदवारों को चुना गया. चयन समिति में सीपीडब्ल्यूडी, डीएमआरसी और हुडको के सदस्य शामिल थे.
जांच में भ्रष्टाचार साबित नहीं हुआ- कोर्ट
केंद्रीय एजेंसी ने कहा कि चयनित उम्मीदवार योग्य थे और कुछ ने बाद में बेहतर नौकरियां भी हासिल कीं, जिससे यह साबित होता है कि किसी को कोई अनुचित लाभ नहीं हुआ. क्रिएटिव टीम को शुरू में बारापुला प्रोजेक्ट से फंडिंग दी जा रही थी, लेकिन बाद में उसे मोहल्ला क्लीनिक योजना से जोड़ दिया गया, जो पूरी तरह से जीएनसीटीडी द्वारा फंडेड थी. कोर्ट ने कहा कि जांच में कोई गड़बड़ी या भ्रष्ट आचरण साबित नहीं हुआ. इसलिए केस को आगे बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है.
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