
वो क्या मजबूरियां थीं जो संसद पर हमले के बाद पाकिस्तान को सबक सिखाने से चूक गया भारत
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पहले करगिल फिर कंधार हाईजैक. उसके बाद भारतीय संसद पर हमला. फिर कालूचक पर अटैक . लगातार पाकिस्तान अपनी मनमानी कर रहा था. भारत सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद सबसे बड़ा सैन्य मोबलाइजेशन ऑपरेशन पराक्रम शुरू करता है. पर 9 महीने बाद सेनाएं वापस बुलानी पड़ जाती हैं.
13 दिसंबर 2001 की सुबह भारत की संप्रभुता के प्रतीक भारतीय संसद पर जो आतंकवादी हमला हुआ उसे देश कभी भूल नहीं सकता.आज देश संसद पर हमले की बरसी पर उन वीर शहीदों को याद कर रहा है जिन्होंने अपनी कुर्बानी देकर देश की शान लोकतंत्र के मंदिर को किसी भी तरह की खरोंच भी नहीं लगने दी. यह भारतीय इतिहास की एक ऐसी घटना थी जिसने न केवल देश की सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती दी बल्कि यह भारत के स्वाभिमान पर भी चोट की.
पांच आतंकवादियों ने संसद परिसर में घुसकर गोलीबारी की, जिसमें नौ लोग मारे गए, जिनमें सुरक्षा कर्मी और संसद के कर्मचारी शामिल थे. संसद भवन में घुसने की कोशिश कर रहे हमलावरों को मार गिराया गया, लेकिन इस घटना ने भारत को गहरा झटका दिया. भारत सरकार ने हमले के लिए पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) को जिम्मेदार ठहराया. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए 1971 से भी बड़ी सैन्य कार्रवाई की तैयारी शुरू कर दी.
भारत ने ऑपरेशन पराक्रम शुरू किया, जिसमें लाखों सैनिकों ( 5 लाख से 8 लाख तक) को सीमा पर तैनात किया गया. उधर पाकिस्तान ने भी करीब 3 लाख सैनिकों को सीमा पर मोबलाइज किया. इस तरह सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद दुनिया में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर दो देशों की सेनाएं आमने सामने खड़ीं थीं. लेकिन पाकिस्तान की सीमा पर करीब 9 महीने तक तैनात भारतीय सेना को वापसी करनी पड़ी. हालांकि कहने को भारत ने तात्कालिक रूप से कूटनीतिक बढ़त हासिल कर ली थी. पाकिस्तान के तत्कालीन प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ के आतंकी गुटों पर एक्शन करने के वादे के बाद ही सेना की वापसी का फैसला लिया गया पर आज तक यह बात देशवासियों को सालती है कि देश युद्ध की चौखट से क्यों वापस आ गया?.
हमले की पृष्ठभूमि और तात्कालिक प्रतिक्रियाएं
2001 का संसद हमला कोई अलग-थलग घटना नहीं था. यह कश्मीर मुद्दे और भारत-पाकिस्तान के लंबे विवाद का हिस्सा था. 1999 के कारगिल युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच तनाव पहले से ही था. फिर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकियों ने कंधार हाईजैक को अंजाम दिया था. अभी साल भर भी पूरा नहीं हुआ था कि पाकिस्तान ने एक बार फिर नापाक कोशिश की. 13 दिसंबर हमले के दिन, आतंकवादी फर्जी आईडी और वाहनों से संसद में घुसे और अंधाधुंध फायरिंग की. हमले में उपराष्ट्रपति कृष्णकांत का वाहन भी लक्ष्य था, लेकिन सौभाग्य से कोई बड़ा नेता हताहत नहीं हुआ. हाल ही भारत के सिनेमाघरों में सुपर डुपर हिट हो रही फिल्म धुरंधर ने भारतवासियों के इस घाव को फिर से कुरेद दिया है.
इस हमले के बाद सरकार की तत्काल प्रतिक्रिया आक्रामक थी. गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने संसद में भाषण देते हुए कहा कि यह हमला पाकिस्तान की साजिश है. NDA सरकार ने पाकिस्तान से मांग की कि वह LeT और JeM के नेताओं को गिरफ्तार करे, उनके कार्यालय बंद करे और उनकी संपत्ति जब्त करे. जब पाकिस्तान ने इन मांगों को नजरअंदाज किया, तो भारत ने 21 दिसंबर 2001 को अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया. इसके बाद जनवरी 2002 तक भारत ने लगभग आठ लाख सैनिकों को सीमा और नियंत्रण रेखा (LoC) पर तैनात कर दिया. यह ऑपरेशन पराक्रम का हिस्सा था, जो भारत का अब तक का सबसे बड़ा सैन्य मोबिलाइजेशन था.

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