लिंगायत वोटों का सवाल, कर्नाटक में 'परिवारवाद' की राह पर चलने को मजबूर BJP
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक जीतने के लिए किसी राज्य की तुलना में कहीं अधिक दांव लगाया था. पार्टी हार के अंतर से इतनी परेशान थी कि उसने कर्नाटक भाजपा के कुछ लोगों को "कोल्ड स्टोरेज ट्रीटमेंट" देने का फैसला किया था. असल में कर्नाटक में भाजपा ने कांग्रेस की 135 सीटों के मुकाबले 66 सीटें ही हासिल की थीं.
कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के सामने बुरी हार का सामना करने के लगभग छह महीने बाद, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने पार्टी को फिर से ऊर्जा देने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के बेटे बीवाई विजयेंद्र को प्रदेश अध्यक्ष को नियु्क्त किया है. विजयेंद्र, हाल ही में शिकारीपुरा से चयनित विधायक हैं, जो कि उनके पिता का गढ़ रही है. विजयेंद्र पिछले हफ्ते 47 साल के हो गए. उन्होंने दक्षिण कन्नड़ के सांसद, नलीन कुमार कतील, की जगह ली. कतील का चार साल लंबा कर्यकाल असंतोषजनक रहा और वह खुद ही इस पद से मुक्ति की मांग कर रहे थे.
‘कोल्ड स्टोरेज ट्रीटमेंट’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक जीतने के लिए किसी राज्य की तुलना में कहीं अधिक दांव लगाया था. पार्टी हार के अंतर से इतनी परेशान थी कि उसने कर्नाटक भाजपा के कुछ लोगों को "कोल्ड स्टोरेज ट्रीटमेंट" देने का फैसला किया था. असल में कर्नाटक में भाजपा ने कांग्रेस की 135 सीटों के मुकाबले 66 सीटें ही हासिल की थीं, जो कि तत्कालीन सीएम बसवराज बोम्मई के लड़खड़ाते प्रशासन का सीधा परिणाम थीं.
जैसे-जैसे दिन बीतते गए, राज्य के नेता उपहास का पात्र बन गए क्योंकि केंद्रीय नेतृत्व ने नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष को नियुक्त करने की उनकी दलीलों को नजरअंदाज करना जारी रखा. उन्होंने अपने दम पर कुछ नाम उछालने शुरू कर दिए, हालांकि उन्हें पार्टी की सोच के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. सबसे बड़ा अपमान तब हुआ जब बेंगलुरु में चंद्रयान टीम को बधाई देने के लिए इसरो मुख्यालय की पहुंचे पीएम मोदी ने प्रदेश के नेताओं को शहर में उनका स्वागत करने से रोक दिया और नलिन कतील, वरिष्ठ नेता आर अशोक सहित अन्य लोगों को प्रधानमंत्री का "अभिवादन" सड़क किनारे लगे बैरिकेड्स के पीछे से करते देखा गया.
विजयेंद्र की नियुक्ति को लेकर कर्नाटक बीजेपी में अब हैरान करने वाली चुप्पी है. उन्होंने सीटी रवि, वी सोमन्ना, शोभा करंदलाजे, आर अशोक, अरविंद बेलाड, सीएन अश्वथ नारायण सहित कई उम्मीदवारों को पीछे छोड़ दिया है. यह आरएसएस पृष्ठभूमि वाले बैकरूम ऑपरेटिव बीएल संतोष के लिए भी एक बड़ा झटका है, क्योंकि उनकी येदियुरप्पा और उनके परिवार के साथ लड़ाई चल रही है.
बीते तीन दशकों से लिंगायत बीजेपी के प्रबल समर्थक एक फैक्ट यह भी है कि, पिछले तीन दशकों में लिंगायत भाजपा के प्रबल समर्थक रहे हैं. यह येदियुरप्पा के कारण ही है. मोदी सरकार की नीतियों ने भाजपा को ओबीसी, एससी, एसटी और मध्यम वर्ग के मतदाताओं को आकर्षित करने में मदद की है. यह मोदी-येदियुरप्पा का ही संयोग था, जिसके कारण 2019 के लोकसभा चुनावों में 28 सीटों में से 25 सीटें बीजेपी ने जीती थीं. हालांकि उस समय भाजपा प्रदेश में सत्ता में नहीं थी.
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